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बुधवार, 31 जुलाई 2013

गाथा हिंदुस्तान की



 गाथा हिन्दुस्तान की 
घटती बढती महिमा  सबकी, घटी नहीं बेईमान की |
सतयुग,त्रेता,कलियुग सबमें,-सदा चली बेईमान की |
देवभूमि   भगवान  की,-
ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

गांधी जी का शिष्य सड़क पर,-अब भी धक्के खाए,
फूट डाल कर राज कर रहा,-नेता   माल  उड़ाए |
ऐसी - तैसी  करता  रहता,- पूरे   हिन्दुस्तान की,
काम नरक जाने के लेकिन,-इच्छा स्वर्ग-विहान की |
देवभूमि भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

एन.जी.ओ.को बना माध्यम,- खाता   'माल मलीदा',
कागज में अनुदान बांटना,- इसका धन्धा  सीधा |
गिद्धों जैसे गटक रहे हैं,- बोटी  हिन्दुस्तान   की,
अपने हित में भेंट चढाते,-भारत के सम्मान की |
देवभूमि भगवान  की,- 
ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

वोट खरीदो, शासक बन कर,-भूलो पांच बरस को,
जनता खोजे, खोज न पाए,-तरसे रोज दरस  को |
डोर हाथ में रक्खो अपने,-चेयर-मैन,  परधान की |
टैक्स  लगा कर  माल  उड़ाना,- परम्परा शैतान की |
देवभूमि  भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

मंहगा राशन बेच रहा है,-खुले  आम क्यों  लाला,
सुबह-शाम मन्दिर में जाकर,-फेर रहा क्यों माला |
जीवन-दायी दवा ब्लैक में,-पूजा किस प्रतिमान की,
कुत्तों से भी बदतर  हालत,-लगती  है इन्सान की |
देवभूमि   भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |


माल  मिलावट  वाला बेचे,-कल्लू - मल  हलवाई,
इंस्पैक्टर क्यों पकड़े उसको,-चखता रोज   मलाई |
अधिक मछलियां गन्दी मिलतीं,इस तालाब महान की,
वेतन  बढता  भ्रष्टजनों  का,-यात्रा  बढे  विमान की |
देवभूमि  भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

सरेआम  बाला  को  घर से,-गुण्डा हर ले  जाए, 
पीड़ितजन पर मित्र पुलिस ही,- गुण्डा-एक्ट लगाए |
कुम्भकरण जैसी हो जाए,-दशा 'पुलिस बलवान' की, 
गुण्डे,  नेता रहें  सुरक्षित,-कीमत कब 'इन्सान' की |
देवभूमि  भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

महिला-कालेज की सड़्कों पर,-बिकतीं  गुप्त किताबें,
ठेके लेकर कोचिंग वाले,- इच्छित चयन  करा दें |
निज  शिष्या से इश्क लड़ाए,-हुई  सोच विद्वान की,
प्रोटेक्शन पा जाए कोर्ट से,-'लक' मजनूं  संतान की |
देवभूमि  भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

रोज  पार्क में जवां दिलों की,-होती  लुक्का-छिप्पी,
सुबह - सवेरे   स्वच्छ्क  बीने,-एफ.एल.,माला-टिक्की |
बीस रूपये में आंख बन्द हो,चीफ-गार्ड मलखान की,
देख  दुर्दशा भी  शरमाए,-दुर्गत  हुई  विधान की |
देवभूमि  भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

ग्राम- प्रधान हुई है जब से,- घीसू      की  घर वाली,
सरजू - दूबे बैठे घर में,-किस विधि  चले  दलाली |
हर अनुदान स्वंय खाजाता,-चिन्ता किसे  विधान की,
अपना हुक्म चलाता घीसू,-चलती  नहीं प्रधान की |
देवभूमि   भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

बिन रिश्वत के काम करें क्यों,-बाबू   या    पटवारी,
मोटी-मोटी रिश्वत  खाते,-लगभग सब अधिकारी |
हक  बनती  जाती है  रिश्वत,-भारत देश महान की,
स्वीसबैंक में रखें ब्लैक सब,हर धरती भगवान की |
देवभूमि   भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की |

काम - चोर,  रिश्वत-खोरों की,-तनखा बढती  जाती,
रोटी और लंगोटी जन की,-छोटी     होती   जाती |
अन्धी  पीसे कुत्ते खाएं,   हालत  देश  महान  की ,
खिल्ली उड़ा रहे हैं मिलकर,जनता  के कल्याण की |
देवभूमि   भगवान  की,-
 ये गाथा  हिन्दुस्तान की | 



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3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (31-07-2013) के कीचड़ तो तैयार, मगर क्या कमल खिलेंगे-- चर्चा मंच 1323 में मयंक का कोना पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मा.आपका बहुत आभार आशा है स्नेह बनाए रखेंगे

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