मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

एक गीत : जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे !



फिसल गए तो हर हर गंगे ,जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे !

वो विकास की बातें करते करते जा कर बैठे दिल्ली
कब टूटेगा "छीका" भगवन ! नीचे बैठी सोचे बिल्ली
शहर अभी बसने से पहले ,इधर लगे बसने भिखमंगे
जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे ! ........

नई हवाऒं में भी उनको जाने क्यों साजिश दिखती है
सोच सोच बारूद भरा हो मुठ्ठी में माचिस  दिखती है
सीधी सादी राहों पर भी चाल चला करते बेढंगे
जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे ! .....

घड़ीयाली आँसू झरते हैं, कुर्सी का सब खेलम-खेला
कौन ’वाद’? धत ! कैसी ’धारा’,आपस में बस ठेलम-ठेला
ऊपर से सन्तों का चोला ,पर हमाम में सब हैं नंगे
जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे !

रामराज की बातें करते आ पहुँचे हैं नरक द्वार तक
क्षमा-शील-करुणा वाले भी उतर गए है पद-प्रहार तक
बाँच रहे हैं ’रामायण’ अब ,गली गली हर मोड़ लफ़ंगे
जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे !

अच्छे दिन है आने वाले साठ साल से बैठा ’बुधना"
सोच रहा है उस से पहले उड़ जाए ना तन से ’सुगना’
खींच रहे हैं "वोट" सभी दल शहर शहर करवा कर दंगे
जै माँ गंगे ! जै माँ गंगे !


-आनन्द-पाठक-
09413395592

5 टिप्‍पणियां:

  1. गंगाजल से धो-धो कर पावन कर लेते हैं अंडे !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आ0 प्रतिभा जी---बहुत खूब क्या मिसरा लगाया-धन्यवाद
      गंगाजल से धो-धो कर पावन कर लेते हैं अंडे !---------यही तो "वैष्णव की फ़िसलन" है
      सादर--आनन्द.पाठक

      हटाएं
  2. आ0 शुक्ला जी
    बहुत बहुत धन्यवाद
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. आ0 ओंकार जी
    धन्यवाद आप का
    सादर
    -आनन्द.पाठक

    जवाब देंहटाएं
  4. आ0 ओंकार जी
    धन्यवाद आप का
    सादर
    -आनन्द पाठक

    जवाब देंहटाएं