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मंगलवार, 31 मार्च 2015

एक ग़ज़ल : आप की नज़र

[एक ग़ज़ल "आप" [AAP]  की नज़र---- ’आप’ की बात नहीं ..बात है ज़माने की]


चेहरे पे था  निक़ाब ,हटाने का शुक्रिया
"कितने कमीन लोग"-बताने का शुक्रिया

अच्छा हुआ कि आप ने देखा न आईना
इलजाम ऊँगलियों पे लगाने का शुक्रिया

घड़ियाल शर्मसार  तमाशा ये देख कर
मासूमियत से आँसू  बहाने का शुक्रिया

हर बात पे कहना कि हमी दूध के धुले
"बाक़ी सभी हैं चोर’ जताने का शुक्रिया

तुम तो चले थे लिखने कहानी नई नई
आगाज़ में ही अन्त पढ़ाने का शुक्रिया

’आनन’ करे यक़ीन,करे भी तो किस तरह
’आदर्श’ का तमाशा बनाने का शुक्रिया

-आनन्द पाठक
09413395592

रविवार, 29 मार्च 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 18


:1:

हर रस्म-ए-वफ़ा सबसे
लेकिन जाने क्यूँ
रहते वो खफ़ा  हमसे ?

:2:

वो जब भी उतरता है
ख़्वाब-ओ-ख़यालो में
इक दर्द उभरता  है

:3:

कुछ मेरे बयां होंगे
मैं न रहूँ शायद
क़दमों के निशां होंगे

;4:
 हर शाम ढलूँ कब तक
  ढूँढ रहीं आँखें
आया वो नहीं अब तक

:5:
बदली ये हवाएं हैं
मौसम भी बदला
लगता वो आएं हैं

-आनन्द.पाठक
09413395592

शुक्रवार, 27 मार्च 2015

काहु न कोउ ,सुख दुःख कर दाता , निज कृत करम ,भोग सब भ्राता।

देहधरे का दंड है ,सब काहू को होय ,

ज्ञानी भुगते ज्ञान ते ,मूरख भुगते रोय।

काहु  न कोउ ,सुख दुःख कर दाता ,

निज कृत करम ,भोग सब भ्राता।

करम प्रधान विस्व करि राखा ,

जो जस करइ ,सो तस फलु चाखा।

सबका अपना पाथेय पंथ एकाकी है ,

अब होश हुआ ,जब इन गिने दिन बाकी हैं।

भावी काहू सौ न टरै।

कहँ वह राहु ,कहाँ वै ,रवि -ससि ,

आनि संजोग परै।

मुनि बशिष्ट पंडित अति ग्यानी।

रचि -पचि लगन धरै।

तात -मरन सिय-हरन ,

राम बन बपु धरि बिपति भरै।

रावन जीति कोटि तैतीसा ,

त्रिभुवन -राज करै।

मृत्युहि बाँधि कूप में राखे ,

भावी बस सो मरै।

अरजुन के हरि हुते सारथि ,

सोऊ  बन निकरै।

द्रुपद -सुता कौ राजसभा ,

दुस्सासन चीर हरै।

हरीचंद -सौ को जग दाता ,

सो घर नीच भरे।

जो गृह छोड़ि देस बहु धावै ,

तउ वह संग फिरै।

भावी के बस तीन लोक हैं ,

सुर नर देह देह धरै।

सूरदास प्रभु रची सु हैवहै ,

को करि सोच मरे।

भाव यह है भावी से होनी से अपने प्रारब्ध से ,कर्मो के लेखे से कौन बचा है। ये देह परमात्मा ने जब दी है तो प्रारब्ध (पूर्व जन्मों के कर्मों का एक अंश )तो भोगना ही पड़ेगा। हँस  के भोगो या रोके किसी और को बलि का बकरा बनाने से क्या फायदा। सुख दुःख मैं अपने कर्मों से ही लिखता आया हूँ जन्म जन्मांतरों से।

होनहार (प्रारब्ध )किसी से नहीं टलती। कहाँ वे राहु और कहाँ वे सूर्य-चन्द्र ,बहुत दूरी है उनमें ,किन्तु इनका भी ग्रहण के समय  संजोग हो जाता है। वशिष्ठ मुनि बड़े विद्वान तथा ग्यानी थे और उन्होंने बड़ी महनत  से राज्य -अभिषेक का मुहूर्त निकाला था  फिर भी होनी को कौन टाल सका ,दशरथ जी मर गए ,सीताजी का हरण हो गया और राम को वनवासी बनके कष्ट झेलने पड़े।

रावण ने तैतीस करोड़ देवताओं को जीत लिया था। मृत्यु को बंधक बनाके कुएं   में डाल दिया था ,किन्तु प्रारब्ध के हाथों वह भी मारा गया। अर्जुन के तो स्वयं भगवान कृष्ण सारथि थे ,पर उसे भी वनवास भोगना पड़ा ,द्रोपदी श्री कृष्ण की परम  भक्ता थी ,पर राजसभा में दुस्सासन ने उनका चीरहरण किया। संसार में राजा हरिश्चचन्द्र के समान कौन दानी होगा ,प्रारब्ध के हाथों उन्ह भी चांडाल का नौकर बनना पड़ा।

यदि कोई विदेश भी चला जाय तब भी प्रारब्ध उसके साथ ही जाता है उसका पिंड नहीं छोड़ता। तीनों लोकों में देवता ,मनुष्य और जितने भी जीव  (देहधारी )हैं सभी प्रारब्ध के वश  में हैं। अत : महाकवि सूरदास  कहतें हैं -होइ है वही  जो राम रची राखा ,प्रभु ने जो विधान रच रखा है प्रकृति का जो संविधान है उससे कोई नहीं बचा है न बच सकता है।

रविवार, 22 मार्च 2015

लघु कथा :शान्ति-भंग



"..... उस मकान वाले को इस मुहल्ले से निकालो। एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर रही है ।  मकान में अवैध धन्धा चलवा रहा है’----बूढ़े व्यक्ति ने चिल्ला चिल्ला कर कहा
किसी ने अपनी खिड़कियाँ नहीं खोली
 थाने में रिपोर्ट लिखाने गया-रिपोर्ट नहीं लिखी गई
कुछ दिनो बाद.....
उसे गिरफ़्तार कर लिया गया -शान्ति-भंग के जुर्म में
कि वह बूढ़ा आदमी मुहल्ले का शान्ति भंग कर रहा था
-------

-आनन्द.पाठक
09413395592

गुरुवार, 19 मार्च 2015

चतुराई सूवै पढ़ी ,सोई पंजर माँहि ,

चारिउ वेद पढ़ाइ करि ,हरि सूँ   न लाया हेत ,

बालि कबीरा ले गया ,पंडित ढूंढे खेत।

(The pundit ) read the four Vedas ,

But for God didn't grow any love ;

Kabir took away ears of grain ,

Pundit in crop- field make a search .


ब्राह्मण गुरु जगत का ,साधू का गुरु नाँहि ,

उरझि पुरझि करि मरि रह्या ,चारों वेदाँ माहिं।

The brahmin is the world's guru ,

Guru of the righteous he is not ,

Entangled in the tangle of

The four Vedas he is dead -lost .

चतुराई सूवै पढ़ी ,सोई पंजर माँहि ,

फिरि प्रमोधै आन कौं ,आपण समझे नाँहि।

Cunningness did the parrot learn ,

Even then it's inside the cage ;

To all and sundry it exhorts ,

To comprehend itself doth fade .

तारा मंडल बैसि करि , चंद बड़ाई खाइ ,

उदइ भया जब सूर का ,स्यूँ तारा छिप जाइ।

Seated in the mist of stars

The moon enjoys a lot of praise ,

No sooner doth the sun rise ,then ,

Together with stars ,it doth fade .

पंडित केरी पोथियाँ ,ज्यों तीतर का ज्ञान ,

औरन शकुन बतावहीं ,अपना फंद न जान।

The pundit 's manuscripts are alike

The knowledge of a partridge ,

To others doth tell good omen ,

Of its own noose lacks the knowledge .

चतुराई क्या कीजिये ,जो नहिं शब्द समाय ,

कोटिक गुन सुगना पढ़ैइ  ,अंत बिलाई खाय।



Oh! what use is cunningness ?

Which doesn't the World assimilate ,

Crores of hymns the parrot repeats

But at last is eaten by cat .

पंडित और मसालची ,दोनों सूझै नाहिं ,

औरन को करें चाँदना ,आप अन्धेरा माँहिं।

The pundit and the torch -bearer -

Either of two in darkness gropes ,

To others he doth give the light

But he himself in darkness goes .

पढ़ि पढ़ि तो पत्थर भया ,लिखी लिखी भया  जो ईट ,

कबिरा अंतर प्रेम की ,लगी न एको छींट।

To much reading has made thee stone

Too much writing has made thee brick ,

In the heart of heart no wetness

Of love was found ,Kabir doth think .

पढ़ि पढ़ि तो पत्थर भया ,लिखी लिखी भया जो चौर ,

जिस पढ़ते साहब मिलेइ ,तो पढ़ना कछु और।

Too much reading has made thee stone ,

Too much writing has made thee thief ;

That reading is altogether

Different which to the Saheb leads.

ब्राह्मण गदहा जगत का, तीरथ लादा जाय ,

यजमान कहै मैं पुनि किया ,वह मिहनत का खाय।

The brahmin is the world's ass

Who is burdened with pilgrimage ;

The client says ,'I did acts of goodness ' ,

The brahmin has his labour wage .

ब्राह्मण ते गदहा भला ,आन देव ते कुत्ता ,

मुलनाते मुरगा भला ,शहर जगावे सुत्ता।

An ass is better than a brahmin ,

A dog is better than a alien god ;

Awakening a sleeping town

Much better proves a crowing cock.

कलि का ब्राह्मण मसख़रा ,ताहि न दीजै दान ,

कटुम्ब सहित नरकै चला ,साथ लिया यजमान।

The kaliyug brahmin is a clown

So to him ought not to donate ,

With his family he's hellward bound ,

Alongwith him his client doth take .

बुधवार, 18 मार्च 2015

लघु कथा 13 : मान-सम्मान


 :
"....कुछ तर्बियत बची है कि नहीं कि सब घोल कर पी गये  तुम लोग..." -पड़ोसी अब्दुल चाचा ने नन्हें को लानत भेजते हुए साधिकार कहा- " तुम लोगो को मालूम है कि नहीं कि भाई जान यानी तुम्हारे पिता जी एक हफ़्ते से खाट पकड़े है ...पंडित जी को कोई देखने वाला नही...और तुम लोग हो कि.."
पिछले हफ़्ते बाथरूम में फिसल गये  पिता जी ---चोट गहरी लगी थी --खाट पकड़ लिया था  । कोई देखने वाला नहीं--कोई सेवा करने वाला नही। शून्य में कुछ निहारते रहते थे। मन ही मन कुछ बुदबुदाते रहते थे एकान्त में  ।लड़के सब बाहर अपने अपने काम में व्यस्त। देखने कोई नहीं आया  । अब्दुल चाचा ने नन्हें को ख़बर कर दिया  ।
नन्हें भागा -भागा पिता जी को देखने आया ।देख कर घबरा गया।मरणासन्न स्थिति में आ गये हैं अब तो। हालत देख कर आभास हो गया कि पिता जी अब ज़्यादा दिन नहीं चलेंगे।
" भईया ! पिता जी को आप दो महीने अपने यहाँ रख लेते तो मैं अपनी बेटी की शादी निपटा लेता फिर मैं उन्हें अपने यहाँ ले जाता"- नन्हें ने बड़े भाई को टेलीफोन पर अपनी व्यथा बताई
" नन्हें ! तू तो जानता ही है कि मैं हार्ट का मरीज़ हूँ डाइबिटीज है ..सुगर लेवेल बढ़ गया है आजकल....मैं तो ख़ुद ही मर रहा हूँ"- बड़े भाई ने अपनी असमर्थता जताई और पत्नी पार्श्व में खड़ी निश्चिन्त हो गईं
नन्हें ने  छॊटे भाई से बात की--" छोटू ! पिता जी को अगर दो महीने के लिए अपने पास रख..लेता तो......"
बात पूरी होने से पहले ही छोटू बोल उठा-" भईया ! बम्बई की खोली में एक कमरे का मकान भी कोई मकान होता है ---पाँव फैलाओ तो दीवार से सर लगता है...स्साला रोज घुट घुट कर जीना-पड़ता है अरे !--इस जीने से तो मर जाना बेहतर---भईया ! आप मेरी मज़बूरी तो जानते ही हो..." छोटे ने अपनी असमर्थता जताई और पत्नी पार्श्व में खड़ी मुस्कराई
 थक हार कर नन्हे एम्बुलेन्स’  खोजने निकल गया कि कोई उधारी में एम्बुलेन्स मिल जाता तो.....
 पिता जी अकेले खाट पर पड़े शून्य में बड़ी देर तक छत की ओर निहारते रहे....कुछ सोचते रहे...शायद अतीत चलचित्र की भाँति एक बार उनके नज़रों के सामने से घूम रहा था......बेटों के जवाब सुनने से पहले..भगवान ने सुन ली...टिमटिमाटी लौ थी...बुझ गई...कमरे में धुँआ फैल गया ...एक इबारत उभर गई

तमाम उम्र  इसी  एहतियात  में  गुज़री
                  कि आशियाँ किसी शाख-ए-चमन पे बार न हो

[बार =भार]

 नन्हें ने सबको खबर कर दिया ....
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"नन्हें ! तू वहीं रुक ,मैं आ रहा हूँ ! पिता जी का क्रिया-कर्म गाजे-बाजे के साथ बड़ी धूम-धाम से होना चाहिए ..पूरे गाँव को बुलाना है...पूरे शहर को खिलाना है
पूरे शहर में कितना "मान सम्मान"था पिता जी का। शहरवालों को भी तो पता चले कि वकील साहब के लड़को ने मान-सम्मान में कोई कसर नहीं छोड़ी...."-बड़े भाई ने फोन किया

जो ’मर ’ रहे थे वो ’ज़िन्दा’ हो गए .... जल्दी जल्दी तैयार होकर अपनी गाड़ी निकाली और रवाना हो गए---पिता जी की ’विरासत’ सम्भालने और ’नगदी’-गहने भी !

-आनन्द.पाठक
09413395592

जग में बैरी कोई नहिं ,जो मन सीतल होय ,

आवत गारी एक है ,उलटत होय अनेक ,

कहै कबीर नहिं उलटिये ,वाही एक की एक।

Single is slander when it comes ,

If rejoined many it becomes ;

Rejoin it not ,exhorts Kabir ,

Since his one remains only one .

जग में बैरी कोई नहिं ,जो मन सीतल होय ,

या आपा को डारि दे ,दया करै सब कोय।

Nobody is foe in the world

If thy temper is calm and cool ,

Give up thy egotistic pride ,

Merciful will be all people.

हाड़ बड़ा हरि भजन करि ,द्रव्य बड़ा कछु देह ,

अकल बड़ी उपकार कर ,जीवन का फल यह।

If thy bones are big ,adore God ,

Give some, if money is immense ;

If thy mind 's sharp ,act for welfare ;

This alone is life's fruitful sense.

दुर्बल को न सताइये  ,जाकी मोटी हाय ,

बिना जीव की साँस सों ,लौह भस्म ह्वै जाय।

Don't persecute one who is weak

Whose cry of sigh is thick with curses ,

A lifeless hide blowing the fire

Doth burn the iron into ashes.

बापू - फिर मत आना

बापू - फिर मत आना

तूफान से निकाल कर लाई
तुम्हारी वह कश्ती,
जो तुम हमें सौंप गए थे,
हम सँभाल नहीं पाए.

और वनप्राणी - रक्षण संस्था ने,
तेरे बंदर छीनकर
जबरन जंगल में छोड़ दिए,
बोले – जंगली जानवर पालना,
पशुओं पर हिंसा है,
उनकी स्वच्छंदता हर ली जाती है.

उधर बकरी न जाने क्यों नाराज हो गई,
उसने दूध देना बंद कर दिया,
अब बस चारा खाती थी,
खैर कोई बात नहीं,
तुम्हारी याद तो दिलाती थी,
पर, एक दिन चोरी हो गई,
पता नहीं किसने चुराई,
बहुत खोजा मिल न पाई,
डर रहा हूँ किसी ने
किसी ने बाजार के हवाले नहीं कर दी.
फिर खबर भी नहीं लग पाएगी
कि वह झटके के हवाले हुई
या उसकी खस्सी ही हो गई.

हाँ, तुम्हारी सहारे की डंडी,
मेरा भी सहारा बनी,
आए दिन मुझे कुत्तों और
साँडों से बचाती रही,

लेकिन एक दिन,
अपने बचाव में,
साँप मार रहा था,
साँप तो बच के भाग निकला,
पर लाठी टूट गई,
अब मेरे पास की
तुम्हारी हर निशानी
मिट गई,
हाँ एक घड़ी थी,
वह रखे रखे जंग खा गई,
क्योकि अब इलेक्ट्रानिक वाच आ गए हैं,
चाबी वाली घड़ियाँ तो एन्टिक मानी जा रही हैं. 

लेकिन बापू
मैं आज भी तुम्,
याद करता हूँ.

तुम्हारे नाम की कई स्कीमें
सरकार ने जो खोल रखी हैं,
उनके बारे रोज अखबार में पढ़ने मिलता है.

किसी दिन पक्ष,
तो किसी दिन विपक्ष,
उन पर कीचड़ उछाल ही लेता है...

क्या करें
स्कीमें भी तो अलग - अलग
सरकार की चलाई हुई हैं,
जब जिसको फायदा नजर आता है ,
वह थोड़ा कोस लेता है.

अब तुम तो यहाँ हो नहीं
कि लोग तुमसे डरेंगे,
तुम्हारी इज्जत करेंगे,
और कुछ उल्टा- सीधा कहने से
परहेज करेंगे.

बापू, अब जमाना भी बदल गया है,
आऊट ऑफ साईट यानी
आऊट ऑफ माईंड
का जमाना चल रहा है,
ऐसे में बोलो बापू कैसे
कोई तुम्हारे बारे सोच सकेगा.

जमाना कॉम्पिटीशन का हो गया है,
अब तो इंजिनीयरिंग और
मेडिकल करके भी नौकरी नहीं मिलती,
कोई अपना काम नहीं करना चाहता,
सब को सरकारी नौकरी ही चाहिए,

क्या करे सरकार भी,
सभी परेशान हैं,

ऐसे में एक बात जरूर है कि,
तुम्हारे नाम से कुछ भी चल जाता है,
कोई आपत्ति नहीं करता
इसलिए जहाँ कहीं भी
आपत्ति की संभावना होती है,
तो तुम्हारा नाम जोड़ लिया जाता है,
स्कीम बिक जाती है.

बापू, कभी कभी तो मुझे डर भी लगता है,
किसी दिन सर फिर गया,
तो कोई बिक्री बढ़ाने के लिए,
बाजार में गाँधी ब्राँड रम
या विस्की न उतार दे,


हाँ यह जरूर है कि वह दिन
देश के लिए अति दुर्भाग्य का दिन होगा,
फिर भी हालातों के मद्दे नजर
मुझे असंभव तो नहीं लग रहा,
मैं इन विचारों के साथ - साथ
काँपने लगता हूँ.

भगवान करे, ऐसा न हो,
जितना हो रहा है ,
क्या वह कम है कि
और की ख्वाहिश की जाए.  

बापू, एक सलाह देना चाहूँगा,
यही एक चीज
आज मुफ्त में मिलती है,
काम की हो या बेकाम की,
कारगर हो या न हो,
मिल ही जाती है.

गलती से भी धरती पर
फिर मत आना
और यदि आ गए.
तो देखोगे, कि
तुम्हारा कैसा मखौल उड़ाया जा रहा है.
बहुत दुख होगा तुम्हें,
मुझे डर है ,
कहीं हृदयाघात हो गया तो,
अब दूसरा राजघाट,
शायद मिले ना मिले.


एम.आर. अयंगर.


        

मंगलवार, 17 मार्च 2015

तरुवर पात सौं यौ कहे ,सुनो पात बात , यह घर याही रीत है ,इक आवत एक जात।



The tree doth to the leaf say thus :

'O leaf '.listen to what I say :

In this house there's the tradition -

One comes ,the other goes away .

पत्ता टूटा डारि से ले गई पवन उड़ाय ,

अब के बिछुरे कब मिलइ  ,दूर पड़ेंगे जाय।

मालन  आवत देखि करि ,कलियाँ करी पुकार ,

फूले फूले चुनि लिये ,काल्हि हमारी बार।

On seeing gardener's wife come

Shout aloud the buds that are young ,

'All flowers in bloom are picked up

So tomorrow will be our turn .

बाढ़ी  आवत देखि करि ,तरवर दोलन लाग ,

हम कटे की कुछ नहीं ,पंखेरू घर भाग।

On seeing the tree feller come

The tree in terror starts to shake ;

'It doth not matter if I'm felled ,

O bird ,homeward thy flight take .


फागुण आवत देखि करि ,बन रूना मन माँहि ,

 ऊंची डाली पात है,दिन दिन पीले थांहि।

Seeing the month of Phagun  come ,

In his heart of heart the tree weeps ;

'My branches are tall but my leaves

Grow pale as day after day creeps' .

मंदिर माँहि झबूकती ,दीवा कइसी जोति ,

हंस बटाऊ चलि गया ,काढ़ौ घर की छोति।

Similar to light of a lamp ,

Soul illumines the body -house ,

When swan -sojourner doth depart

The untouchable's taken out .

यह तन काचा कुम्भ है ,चोट चहुँ दिस खाइ ,

एक राम के नाँव बिन  ,जदि तदि प्रलै जाइ।

This body is a brittle pitcher

From four directions which is hit ,

Without the canoe of Ram's name

Deluges too oft will drift .

नागिन के तो दो ही फ़न ,नारी के फ़न बीस ,

पर नारी पैनी छुरी ,मति कोई लावो अंग ,

रावण के दस सिर  गये ,पर नारी के संग।

Other's wife is a sharp -edged dagger,

So no one ought to embrace her ;

Ravana lost all his ten heads

While with wife of the other .



पर नारी पर सुंदरी ,बिरला बंचै कोई ,

खाता मीठी खांड़ सी ,अंति काल विष होई।

Rare it is to escape from charms

Of other's beautiful woman ,

while eating she is sweet like molasses ,

But at last turns into poison .


छोटी मोटी कामिनी ,सब ही विष की बेल ,

बैरी सारे दाव दै ,वह मारे हंसि  खेल। .


The aphrodisian ,high or low ,

All are a venomous creeper ,

The foe uses all his tactics ,

But she kills in playful laughter .

नागिन के तो दो ही फ़न ,नारी के फ़न  बीस ,

जाको डस्यो  न फिरि जिये ,मरी है बिस्वा बीस।

A  she -snake has only two fangs,

While twenty fangs a woman has ,

Those men she stings do not survive ,

And twenty times twenty go dead .

नारी की झाँई परत ,अंधा होत भुजंग ,

कबीरा तिनकी का गति ,जिन नित नारी  संग।  

रविवार, 15 मार्च 2015

दिन को रोज़ा रहत है ,रात हनत है गाय , यह खून बह बंदगी ,कहु क्यूँ ख़ुशी खुदाय


दिन को रोज़ा रहत है ,रात हनत है गाय , यह खून बह बंदगी ,कहु क्यूँ ख़ुशी खुदाय



दिन को रोज़ा रहत है ,रात हनत है गाय

यह खून बह बंदगी ,कहु क्यूँ ख़ुशी खुदाय

In day time thou observeth fast ,

And doth slaughter cow in the night ;

This bloodshed !that adoration !

Say in what way it's God's delight ?

मुर्गी मुल्लाह सौं कहै , जबह करत है मोहिं

  साहब लेखा माँगसी ,संकट परिहै तोहि।

The hen to the Mullah sayeth ;

' For thy food thou dost slaughter me ;

When Saheb asks for thy account

Catastrophe will fall on thee'.

बकरी पाती खात है ,ताकी काढ़ी खाल ,

जो बकरी को खात  है , तिनका कौन हवाल।


The goat eats grass and (leaves of trees )

But is killed and its skin peeled ,

In what measure the men be dealt

who kill the goat and  its flesh eats .

कबीरा तेई पीर है ,जो जाने पर पीर,

जो पर पीर न जानि है ,सो काफ़िर बेपीर।

He alone is the Pir who is

Full sensitive to others pain ;

A cruel infidel he is who's

Insensitive to others pain .

चन्द माहिया :क़िस्त 17

चन्द माहिया : क़िस्त 17

:1:
दरया जो उफ़नता है
दिल में ,उल्फ़त का
रोके से न रुकता है 

:2:
क्या कैस का अफ़साना !
कम तो नहीं अपना
उलफ़त में मर जाना

:3:
क्या हाल सुनाऊँ मैं 
तुम से छुपा है क्या
जो और छुपाऊँ मैं

:4:
सब उनकी मेहरबानी
सागर में कश्ती
और मौज़-ए-तुगयानी

:5:
इस हुस्न पे इतराना !
दो दिन का खेला
इक दिन तो ढल जाना

-आनन्द.पाठक
09413395592

[मौज़-ए-तुगयानी =बाढ़/सैलाब की लहरें]


गुरुवार, 12 मार्च 2015

अफसरों की भ्रष्ट प्रवृत्ति रोकना जरुरी


देश और दुनिया में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाए जाने को लेकर कशमकश जारी है। सामाजिक संगठन से लेकर राजनैतिक संगठनों द्वारा इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया जा रहा है। समाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे आए दिन भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आन्दोलन करते रहते हैं। योग गुरु बाबा रामदेव भी भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आवाज उठाते रहते हैं। बावजूद इसके भी भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश लगता नजर नहीं आ रहा है। सच है अगर ऐसे ही रहा तो भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग सकेगा और वह आने वाली पीढ़ी के लिए नासूर बन जाएगा। हर परिवार में बच्चे को जहां जीवन में सत्य और ईमानदारी का अनुपालन करने का संस्कार दिया जाता है, निश्चित रुप में आने वाले दिनों में बच्चों को इसके बजाय भ्रष्टाचार करने का संस्कार स्वमेव प्राप्त हो जाएगा। दरअसल भ्रष्टाचार की मूल में जन सामान्य का भ्रष्ट आचरण ही जिम्मेदार है, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है। पंचायत से लेकर राज्य और केन्द्र की सरकारों के निर्वाचन में जब मतदाता बिना सोचे समझे मतदान करता है, अपना काम बनाने के लिए हर अनैतिक सहारे को लेने के लिए तैयार हो जाता है तो भ्रष्टाचार पर अंकुश कैसे लग सकेगा। यह एक गंभीर सवाल है। इन सबके बीच छत्तीसगढ़ की सरकार ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए एक सराहनीय पहल की है। इस पहल से और कुछ हो या न हो पर इतना जरुर होगा कि अफसरशाही के बीच भ्रष्टाचार को लेकर एक खौफ पैदा होगा। छत्तीसगढ़ सरकार ने भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति को कुर्क करने के लिए विधानसभा के पटल पर एक विधेयक पेश किया है। इस विधेयक के पास होते ही यह व्यवस्था कानूनी रुप धारण कर लेगी। इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि राज्य सरकार लोक सेवकों की अनुपातहीन संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा भी कर सकेगी। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की गैर-मौजूदगी में संसदीय कार्यमंत्री अजय चंद्राकर ने 11 मार्च 2015 को इससे संबंधित छत्तीसगढ़ विशेष न्यायालय विधेयक, 2015 विधानसभा में पेश किया। इस विधेयक में लोक सेवकों द्वारा भ्रष्ट साधनों से अर्जित चल-अचल अनुपातहीन संपत्ति को जब्त या राजसात करने का प्रावधान किया गया है। विधेयक में कुल 28 धाराएं शामिल की गई हैं। विधेयक में ऐसे मामलों के लिए विशेष न्यायालय के गठन का प्रावधान किया गया है, जो इस प्रकार के मामलों की सुनवाई करेगा। इन मामलों का निराकरण एक वर्ष के भीतर किया जाएगा। विधेयक में प्रावधान किया गया है कि ऐसे मामलों में संपत्ति कुर्क करने की पुष्टि एक माह के भीतर विशेष न्यायालय द्वारा की जाएगी। इसके साथ ही विशेष न्यायालय ऐसी कुर्क-अधिगृहीत संपत्ति को प्रबंधन के लिए जिला मजिस्ट्रेट अथवा उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति को सौंपेगा। अपचारी लोक सेवक को विशेष न्यायालय में सुनवाई का समुचित अवसर दिया जाएगा। प्रभावित व्यक्ति द्वारा विशेष न्यायालय के आदेश के विरुद्ध एक माह के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी। छत्तीसगढ़ सरकार का यह कदम भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की दिशा में सराहनीय तो है ही, साथ ही देश के अन्य राज्य की सरकारों के लिए एक संदेश भी है कि अगर वहां की राज्य सरकारे भी चाहें तो ऐसे विधेयक को सदन में पेश कर उसे कानूनी अमलीजामा पहना सकते हैं। पिछले कुछ सालों में पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में घटी कुछ घटनाओं पर नजर डाले तो ऐसा प्रतीत होता है कि अफसरशाही का एक बड़ा वर्ग भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में शामिल है। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश में हुआ खाद्यान्न घोटाला, मनरेगा घोटाला, एनआरएचएम घोटाला (इस घोटाले में सीएमओ स्तर के तीन अधिकारियों की हत्या भी हुई थी) जैसे मामले प्रमुख है। उत्तर प्रदेश के ही नोएडा के एक अभियंता यादव सिंह का मामला तो देश ही नहीं दुनिया में सुर्खियों में छाया रहा। इन अफसरों ने व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार करके जनहित की योजनाओं के संचालन के लिए मिले करोड़ों की धनराशि का दुरुपयोग किया। दुखद है कि अकेले उत्तर प्रदेश ही नहीं, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों में अफसरों द्वारा भ्रष्टाचार किए जाने के मामले सामने आ रहे हैं। पश्चिम बंगाल में शारदा चिटफंड घोटाले का मामला भी कम गंभीर नहीं है। इस घोटाले में भी राजनीतिक और अफसरशाही की तिकड़ी शामिल रही है। इन परिस्थितियों के बीच अगर देश के सभी राज्य की सरकारें छत्तीसगढ़ सरकार की तरह अफसरशाही के भ्रष्ट आचरण पर अंकुश लगाने के दिशा में ऐसा ही प्रयास करें तो कुछ हद तक भ्रष्टाचार की बढ़ती प्रवृत्तियों पर कुछ अंकुश लग पाना संभव हो सकता है। हम विचार करें तो पाएंगे कि समाज में भ्रष्टाचार की शुरुआत अफसरशाही से ही होती है। रातोंरात पैसे कमाने की चाहत में अफसर गलत फैसले देते हैं और उसका परिणाम यह दिखता है कि गलत करने वाला ही सफल हो जाता है। इसकी देखादेखी अन्य लोग भी उसी रास्ते को अपनाने लगते है। धीरे-धीरे भ्रष्टाचारियों की एक चेन तैयार हो जाती है। अगर अफसरशाही के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा तो निश्चित रुप से समाज के हर क्षेत्र में इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। अफसर भ्रष्ट नहीं होगा, तो वह सही निर्णय लेगा और सही फैसले देगा। अफसर के सही फैसले से समाज में भी भ्रष्ट आचरण करने वालों पर अंकुश लग सकेगा।
     

मंगलवार, 10 मार्च 2015

लघु व्यंग्य कथा 12 : अस्मिन असार संसारे ....



---’तीये’ की बैठक चल रही है । पंडित जी प्रवचन कर रहे हैं -"अस्मिन असार संसारे !..इस असार संसार में ..जगत मिथ्या है .ईश्वर अंश ...जीव अविनाशी
ज्ञानी ध्यानी लोगो ने कहा है ---पानी केरा बुलबुला अस मानुस की जात... तो जीवन क्या है... पानी का बुलबुला है ...नश्वर है..क्षण भंगुर है..मैं नीर भरी दुख की बदली...उमड़ी थी कल मिट आज चली...जो उमड़ा ..वो मिटा..जो आया है वो जायेगा ,,’जायते म्रियते वो कदाचित...तो फिर किसका शोक ....जो भरा है वो खाली होगा..यही जीवन है यही नश्वरता है गीता में लिखा है -"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय ....अर्थात यह शरीर क्या है माया है ..फटा पुराना कपड़ा है ...आदमी इसे जान ले कि व्यर्थ ही इस कटे-फटे कपड़े को सँवार रहा था तो शरीर छूटने का कोई कष्ट नहीं....शरीर तो दीवार है .मिट्टी की दीवार ..एक घड़े की दीवार की तरह...जल में कुम्भ...कुम्भ में जल है ..बाहर भीतर पानी....फुटा कुम्भ जल जल ही समाना ...यह तथ कहें गियानी---... .."-
--"तुलसी दास जी ने कहा है क्षिति जल पावक गगन समीरा ...जब यह शरीर क्षिति का बना है मिट्टी का बना है तो इसके मिटने का क्या शोक करना.....मिट्टी का तन मिट्टी का मन क्षण भर जीवन मेरा परिचय...तो सज्जनों ! आप सब जानते है ..एक फ़िल्म का गाना है---चल उड़ जा रे पंक्षी कि अब यह देश हुआ बेगाना...शरीर पिंजरा है ..आत्मा पंक्षी है..आत्मा ने पिंजरा छोड़ दिया अब वह और पिंजरे में जायेगी...
पंडित जी ने अपना प्रवचन जारी रखा,, उन्हें आत्मा-परमात्मा जीव के बारे में जितनी जानकारी थी सब उड़ेल रहे थे

और धन ...धन तो हाथ का मैल है ...सारा जीवन प्राणी इसी मैल के चक्कर में पड़ा रहता है...इसी मैल को बटोरता है ..और अन्त में सब कुछ यहीं छोड़ जाता है ..धन तो माया है
धन मिट्टी है शास्त्रों में इसे "लोष्ठ्वत’ कहा गया है ...मगर सारी जिन्दगी आदमी इसी "लोष्ठ’ को एकत्र करता रहता है ..और अन्त में? अन्त में ’धन ’ की कौन कहे वो तो यह मिट्टी भी साथ नहीं ले जा सकता ... आदमी इस मिट्टी को समझ ले तो कोई दुख न हो....जब आवै सन्तोष धन ..सब धन धूरि समान’ अन्त में मालूम होता है कि आजीवन हम ने जो दौड़-धूप करता रहा वो सब तो धूल था ..तब तक बहुत विलम्ब हो चुका होता है---सब ठाठ पड़ा रह जायेगा...जब लाद चलेगा बंजारा...बंजारा चला गया..किस बात का शोक....
पंडित जी घंटे भर आत्मा-परमात्मा--जीव..जगत .माया...धन..मिट्टी आदि समझाते रहे और श्रोता भी कितना समझ रहे थे भगवान जाने

अन्त में ...अब हम सब मिल कर प्रार्थना करें कि भगवान मॄतक की आत्मा को शान्ति प्रदान करें और और परिवार को दुख सहने की शक्ति....."-पंडित जी का प्रवचन समाप्त हुआ

...लोग मृतक की तस्वीर पर ’श्रद्धा-सुमन’ अर्पित करने लगे ...पंडित जी ने जल्दी जल्दी पोथी-पतरा सम्भाला --चेले ने ’लिफ़ाफ़े’ में आई दान-दक्षिणा संभाली..इस जल्दी जल्दी के क्रम में चेले से 2-दक्षिणा का लिफ़ाफ़ा रह गया...पंडित जी की ’तीक्ष्ण दॄष्टि’ ने पकड़ लिया और चेले को एक हल्की सी चपत लगाते हुए कहा-" मूढ़ ! पैसा हाथ का मैल है..लिफ़ाफ़ा’ तो नहीं -यह लिफ़ाफ़ा क्या तेरा बाप उठायेगा..
पंडित जी ने दोनो लिफ़ाफ़े उठा कर जल्दी जल्दी अपने झोले में रख लिए...उन्हे अभी दूसरे ’तीये’ की बैठक में जाना है और वहाँ भी यही प्रवचन करना है---" अस्मिन असार संसारे !....पैसा हाथ का मैल है ....

-आनन्द.पाठक
09413395592

शनिवार, 7 मार्च 2015

एक होली-उत्तर गीत

मित्रो !
कल ’होली’ थी , सदस्यों ने बड़े धूम-धाम से ’होली’ मनाई।  आप ने उनकी "होली-पूर्व " की रचनायें पढ़ीं 
अब होली के बाद का एक गीत [होली-उत्तर गीत ]-... पढ़े,.

होली के बाद की सुबह जब "उसने" पूछा --"आई थी क्या याद हमारी होली में ?" 
  एक होली-उत्तर गीत
    
"आई थी क्या याद हमारी होली मे ?"
आई थी ’हाँ’  याद तुम्हारी होली में

रूठा भी कोई करता क्या अनबन में
स्वप्न अनागत पड़े हुए हैं उलझन में
तरस रहा है दर्पण तुम से बतियाने को
बरस बीत गए रूप निहारे दरपन में
पूछ रहे थे रंग  तुम्हारे बारे में -
मिल कर जो थे रंग भरे रंगोली में

होली आई ,आया फागुन का मौसम
गाने लगी हवाएं खुशियों की सरगम
प्रणय सँदेशा लिख दूँगा मैं रंगों से
काश कि तुम आ जाती बन जाती हमदम 
आ जाती तो युगलगीत गाते मिल कर
’कालेज वाले’ गीत ,प्रीति की बोली में

कोयल भी है छोड़ गई इस आँगन को
जाने किसकी नज़र लगी इस मधुवन को
पूछ रहा ’डब्बू"-"मम्मी कब आवेंगी ?
तुम्हीं बताओ क्या बतलाऊं उस मन को
छेड़ रहे थे नाम तुम्हारा ले लेकर
कालोनी वाले भी हँसी-ठिठोली में --आई थी ’हाँ याद तुम्हारी होली में 

-आनन्द.पाठक
09413395592

गुरुवार, 5 मार्च 2015

क्या अजब ज़माना है

क्या
अजब जमाना है
लोग
बेच डालते है
माँ का नाम
और
करते है व्यवसाय
माँ के नाम पर,

भूल जाते है
संबंधो को
लूट जाते है ज़ज्बात
और
 सजा लेते है
अपनी दूकान ,

बाँध डालते है
सीमाएं
धर्म और आस्था की,

तोड़ डालते है
विश्वास की डोर
और
कर डालते है
बेघर विश्वास को,

अर्थ का
समाज है
और
अर्थ के सम्बन्ध

छिनभिन्न कर डालते है
ममत्व और भातृत्व
सच क्या
ज़माना है ?

लघु कथा 11 : इवेन्ट मैनेजर

मंच के सभी मित्रों को होली की शुभकामनायें........



"...आप ही ’आनन’ जी है? फ़ेसबुक पर आप ही "अल्लम-गल्लम’ लिखते रहते है तुकबन्दिया शायरी करते रहते है?"-आगन्तुक ने सीधा तीर मारा
" जी आप कौन ?"-मैने प्रश्नवाचक मुद्रा में पूछा
"अरे ! आप ने मुझे नहीं पहचाना? मैं कवि ’फ़लाना’ सिंह ..बहुत दिनों से आप फ़ेसबुक पर दिखाई नहीं दिए तो सोचा आप के दर्शन कर अपना जीवन सँवार लूँ।"
अकारण  स्तुति वाचन से ,मैं सचेत हो गया -: " अच्छा किया कि आप ने अपने नाम के आगे कवि जोड़ दिया है वरना श्रोताओं का कोई भरोसा नहीं कि क्या समझ लें आप को --भ्रम की स्थिति स्वयं दूर कर दी आप ने --हिन्दी साहित्य में फेसबुक के रास्ते बहुत घुसपैठिये आ गये है आजकल.....""मैने कहा

" हें ! हें ! हें !! अच्छा मज़ाक कर लेते है आप भी। आप ने मेरी कविता नहीं पढ़ी ? कल ही छपी है ’फ़लाना’ पत्रिका में ..कतरन तो इन्टरनेट के सभी साईटों पर चढ़ा दी ..सभी मंच पर लगा दी है ...सैकड़ों लोगों ने "लाईक’ किया है दर्ज़नो नें ’वाह , वाह किया...पच्चीसियों ने अपनी ’टिप्पणियाँ लिखी कि ऐसे कविता हिन्दी साहित्य में पिछले 3 दशक से नहीं लिखी गई ..अगर उस समय लिखी जाती तो ’तार-सप्तक’ में अवश्य स्थान पाती....सोचा कि आप का आशीर्वाद भी लेता चलूं"

और उन्होने पत्रिका की कतरन मेरे सामने रख दिया। पढ़ा। सम्पादक ने अपनी तरफ़ से , उनके परिचय में उन्हे वरिष्ठ कवि ..कविता जगत में नया हस्ताक्षर..हिन्दी साहित्य को उनमें छिपी अनेक संभावनाओं का लाभ......एक नये तारे का अभ्युदय....और भी बहुत कुछ लिखा था। मैं तय नहीं कर पा रहा था कि कवि और सम्पादक में कौन महान है ।आप इसे मेरी तंग नज़र भी कह सकते है
" तार सप्तक’ में नहीं छपी तो कोई बात नहीं..."कविता अनवरत" में छप जायेगी ’सूद’ जी छाप रहें है आजकल। 3-खण्ड निकाल चुके हैं अबतक । आप की कविता जो है सो है मगर मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूँ"
" आनन जी ! बस आप तो आशीर्वाद दीजिये इस ग़रीब-उल-फ़क़ीर को"

  मैने आशीर्वाद स्वरूप, मेज की दराज से एक ’रेट कार्ड’ निकाल कर उन के सामने बढ़ा दिया.उन्होने पढ़ा..हल्का सा मूर्छित हुए फिर चेतनावस्था में आते हुए कहा
" अयं ,ये क्या ? इसमें तो सब आईट्म का रेट लिखा है ....सम्मान कराने का .अलग...ताम्र-पत्र का अलग..स्तुति गीत का अलग...नारियल-साल भेंट करने का अलग...श्रोता इकठ्ठा करने का अलग...फोटो खिचवाने का अलग ..समीक्षा करवाने का अलग...आरती करने कराने का अलग....टिप्पणियां ’फ़्री ’ में है .पुस्तक विमोचन करवाने का अलग वरिष्ठ कवियों को आमन्त्रित करने का मय यात्रा-खर्च और ठहराने का रेट अलग....ये सब तो ’इवेन्ट मैनेजमेन्ट का रेट है ."तो क्या आप ने शे’र-ओ-शायरी करना छोड दिया है?"----उन्होने जिज्ञासा प्रगट की

" जी ,बहुत पहले छोड़ दिया फ़ायदे का सौदा नहीं था सो "इवेन्ट मैनेजमेन्ट" कम्पनी खोल ली और आप जैसे "छपास पीड़ित’ लेखकों कवियों की सेवा करता हूँ। कहिए कौन सा ’डेट बुक’ कर दूं । मैं तो कहता हूं कि आप भी यह कविता वविता लिखना छोड़ मेरी कम्पनी ज्वाइन कर लें, सुखी रहेंगे"
" बस बस पाठक जी ! मिल गया आशीर्वाद:"-- कवि ’फ़लाना सिंह -जो गये तो फिर लौट के इधर न आये।
सुना है उन्होने भी कोई कम्पनी खोल रखी है

[नोट : सुरक्षा कारणों से कॄपया ’कवि’ और ’पत्रिका" का नाम न पूछियेगा]
-आनन्द.पाठक.
09413395592


सोमवार, 2 मार्च 2015

एक लघु व्यंग्य कथा 10 : यू टर्न



".....राम राम !राम !! घोर कलियुग आ गया ....अब यह  देश नहीं चलेगा ...चार दिन इन्टर्नेट पर ’चैटिंग क्या कर ली कि सीधे "शादी" कर ली । इन ’फेसबुक" वालों ने तो धर्म ही भ्रष्ट कर के रख दिया ....." पंडित जी ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए कथन जारी रखा - "--- अब आप ही  बताइए माथुर साहब !-देखा न सुना ,न घर का पता न खानदान का ...अरे यह भी कोई शादी हुई ....शादी विवाह में जाति देखी जाती है.... बिरादरी देखी जाती है ...अरे हमारे यहाँ तो गोत्र की कौन कहे ..हम तो ’नाड़ी" तक चले जाते हैं.....धर्म-कर्म भी कोई चीज  है कि नहीं ...शास्त्रों में क्या झूट लिखा है ...मनु-स्मृति में ग़लत लिखा है...विजातीय विवाह कोई विवाह होता है ...और वो भी कोर्ट में ...न पंडित न फ़ेरा ..न वर न बरात ..न अग्नि का फेरा .....ऐसे में तो संताने ’वर्ण-संकर’ ही पैदा होगी....धर्म का क्षय होगा "
माथुर साहब धर्म की यह  व्याख्या वह बड़े ’चाव’ से सुन रहे थे कारण कि उनके पड़ोसी अस्थाना साहब की बेटी भाग कर कोई विजातीय " कोर्ट मैरिज" कर ली थी
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कुछ वर्षों पश्चात.....एक दिन

रास्ते में पंडित जी और माथुर साहब टकरा गये.एक "ट्रैफ़िक-पोस्ट" पर.। ....प्रणाम पाती हुआ ...
माथुर साहब---" ...सुना है आजकल आप का ’छुट्टन’ आया है विलायत से छुट्टी पर ..छोटा था तो देखा था अब तो बड़ा हो गया होगा ...साथ में कोई "अंग्रेजन बहू’ भी साथ लाया है... ?
"- बड़ी संस्कारी बेटी है मेरी बहू ....उतरते ही "हाय-डैडू’- कहा ..इसाई "ब्राह्मण" की बेटी है..सुना है उसके पिता भी पूजा-पाठ कराते  है वहाँ । भाई ! शादी विवाह तो ऊपर वाला ही बनाता है..... हम कौन होते हैं ..... क्या देश क्या विलायत ...जोड़ियाँ तो स्वर्ग से ही बनती है...भगवान बनाते है ..सब में एक ही प्राण ,सब में एक ही खून ..सबके खून का एक ही रंग ..ये तो हम हैं कि हिन्दू मुसलिम सिख ईसाई छूत-अछूत कर बैठे हैं...’सर्व धर्म सदभाव देश आगे बढ़ेगा... बहू भी वहाँ नौकरी करती है ..अच्छा पैसा कमाती है..बेटा भी कभी कभी कुछ भेंज देता है .......दोनो राजी-खुशी रहें हमें और क्या चाहिए......

माथुर साहब को इस बहू-कथा में ज़्यादा ’आनन्द’ नही आ रहा था क्योंकि यह उनके पड़ोसी ’अस्थाना" साहब की बेटी की कथा न थी ....
फिर कुछ औपचारिक बात-चीत के बाद दोनों ने अपनी अपनी राह ली
पीछे "ट्रैफ़िक-पोस्ट’ पर लिखा था--" यू-टर्न"

-आनन्द.पाठक-
09413395592