शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

लोग अपनी नजरों में



लोग अपनी नजरों में गिरतें नही है।
गुनाह करते है हया करते नहीं है।।

वतन ने शहादत मॉगी घरों में छुप गए।
कल तो कहते थे मौत से डरते नहीं हैं।।

फैसले से कोई नीचा या उॅचा नहीं होता।
बुज़दिल तो वे होते हैं जो लड़ते नहीं है।।

वे जो वक़्त के सूई के साथ चलते है।
अजी़म होते हैं मरकर भी मरते नहीं हैं।।

दुनियां में कुछ शख़्स ऐसे भी मिलते है।
अंदर तड़पते है मगर ऑख भरते नहीं हैं।।

उनकी आह फ़लक का सीना चीर देती है।
जो दर्द तो सहते हैं बयां करते नहीं है।।

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

आनंद मंत्रालय
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की पहल से प्रेरित हो कर एक अन्य राज्य के मुख्यमंत्री ने भी अपनी सरकार में ‘आनंद मंत्रालय’ बनाने का विचार किया.
वह झटपट अपने बड़े भाई के पास दौड़े. बड़े भाई जेल में बंद होते हुए भी पार्टी के अध्यक्ष थे, उन्हीं के आदेश पर मुख्यमंत्री सब निर्णय लेते थे. बड़े भाई ने सोच-विचार कहा की पत्नी (अर्थात बड़े भाई की पत्नी) से बात करो. पत्नी भारत सरकार में एक मंत्री के पद पर भी थीं.  लेकिन हर निर्णय वह अपने मामा की सलाह पर लेती थीं.
मामा बोले, अच्छा विचार है. बनवारी लाल बहुत परेशान रहते हैं, उन्हें मंत्री जो न बनाया था. यह मंत्रालय उन्हें सौंप दो.
बनवारी लाल जी मामा के चहेते थे पर बड़े भाई को फूटी आँख न सुहाते थे. मामा राजनीति के पुराने खिलाड़ी थे, जानते थे कि कम से कम बीस चुनाव क्षेत्रों में बनवारी लाल की पकड़ थी. साल भर में चुनाव होने वाले थे. कई पार्टियाँ बनवारी लाल को अपनी ओर खींच रहीं थीं. मुख्यमंत्री को बात जंच गयी. बनवारी लाल जी ‘आनंद मंत्री’ बन गए.
बड़े भइया ने सुना तो आग-बबुला हो गए. उधर बनवारी लाल भी अप्रसन्न थे. चुनाव सिर पर थे, साल भर ही मंत्री रह सकते थे. उन्हें पी डब्लू डी जैसा विभाग चाहिए था.  ‘आनंद मंत्री’ बन कर वह ‘कुछ’ न कर पायेंगे, इस बात का उन्हें अहसास था.
शाम कुमार को ‘आनंद मंत्रालय’ का सचिव नियुक्त किया गया. वह तीन वर्षों से बिना किसी कार्यभार के अपना समय काट रहे थे. न्यायलय ने आदेश दे रखा था कि उन्हें तुरंत किसी पद पर नियुक्त किया जाए. उनके बारे में प्रसिद्ध था कि कानून की हर किताब उन्होंने रट रखी थी. जिस भी मंत्री के पास उन्हें भेजा जाता था वह मंत्री चार दिनों में ही उनसे छुटकारा पाने को आतुर हो जाता था.
मंत्री जी के हर प्रस्ताव पर शाम कुमार मंत्री जी को बीसियों कायदे-कानून समझा देते थे. शांत चित भाव से वही करते थे जो उन्हें न्याय-संगत, तर्क-संगत, विधि-संगत, नियम-संगत और लोकोपकारी लगता था. मंत्री अपने बाल नोच लेते थे पर  शाम कुमार बड़े शांत स्वभाव से अपने काम में जुटे रहते थे. कोई भी मंत्री उन्हें उत्तेजित या क्षुब्द न कर पाया था.
शाम कुमार को अपने समक्ष पा कर बनवारी लाल के हाथ अपने सिर की ओर उठे. बहुत प्रयास के बाद ही वह अपने को अपने बाल नोचने से रोक पाए.
‘नया विभाग है, तुरंत नये कायदे-कानून बनाने होंगे, तभी तो हम राज्य के इन पीड़ित लोगों को आनंदित कर पायेंगे,’ शाम कुमार ने शांत लहजे में कहा.
‘कायदे-कानूनों की क्या कोई कमी हैं इस देश में जो आप को नए कानून बनाने की सूझ रही है? अगर लोगों के कष्टों को दूर करना है तो कुछ कायदे-कानून हटाने की सोचें. मिनिमम गवर्नेंस की बात करें,’ मंत्री ने थोड़ा खीज कर कहा.
‘कानून तो दूसरे विभागों के हटेंगे, हमारे विभाग के कानून तो बनाने होंगे. पहली बार यह विभाग बना है, कानून तो बनाने ही होंगे.............’
‘क्यों न हम अलग-अलग देश जाकर पता लगाएं कि वहां उन देशों में ऐसे मंत्रालय किस भांति चलते हैं, किस तरह वहां की सरकारें लोगों को आनन्द पहुंचातीं हैं?’ बनवारी लाल ने टोक कर कहा. वह दो बार मंत्री रह चुके थे लेकिन एक बार भी वह किसी विदेशी दौरे पर न जा पाए थे. कई नये-नये मंत्री तो दस-बीस देश घूम आये थे, परिवारों सहित. यह बात उन्हें बहुत खलती थी.
‘कुछ नये लोगों की भर्ती भी करनी होगी विभाग में,’ शाम कुमार अपनी धुन में बोले.
भर्ती की बात सुनते ही मंत्री के कान खड़े हो गये. बोले, ‘मेरी अनुमति के बिना एक भी आदमी भर्ती न हो.’
‘आप निश्चिंत रहें, इस विभाग में हर काम पूरी तरह नियमों के अनुसार ही होगा. भर्ती नियमों के अनुसार...............’ शाम कुमार भर्ती नियमों एक लम्बी व्याख्या करने लगे. अब बनवारी लाल अपने को रोक न पाये और अपने बाल नोचने लगे. मन ही मन वह मुख्यमंत्री को कोस रहे थे.

बनवारी लाल और शाम कुमार को देख कर तो नहीं लगता कि यह मंत्रालय लोगों को कभी को भी आनंदित कर पायेगा. फिर भी मुख्यमंत्री और उनके बड़े भाई की पत्नी के मामा आनंदित हैं, शायद आने वाले तूफ़ान का उन्हें अभी आभास नहीं.

मंगलवार, 5 जुलाई 2016

रेवत
भगवान् बुद्ध के एक शिष्य के सम्बंध में एक सुंदर गाथा है.
बुद्ध के शिष्य थे महाकश्यप. महाकश्यप का छोटा भाई था रेवत. रेवत के माता-पिता ने उसका विवाह निश्चित किया. विवाह के कुछ दिन पहले रेवत के मन में आया कि उसके भाई ने बुद्ध की शरण में जाकर अपना जीवन सार्थक कर लिया, उन्हें बोद्ध प्राप्त हुआ. पर वह स्वयं तो विवाह के बंधन में बंध कर अपना जीवन व्यर्थ गंवाने जा रहा था.
रेवत विवाह से पहले ही घर छोड़ कर चला गया. घर छोड़ते समय मन में आया कि बुद्ध के दर्शन करूं. फिर सोचा कि पहले अपने आप को योग्य बना लूँ, बुद्ध के दर्शन करने की पात्रता प्राप्त कर लूँ. तभी उनके दर्शन करूं.
वह एक वन में चला गया. वन में उसे बुद्ध के कुछ भिक्षु मिले. उन्हीं से उसने दीक्षा ली और भिक्षु बन गया. सात वर्षों तक रेवत ने उस वन में तपस्या की. उसे परम ज्ञान प्राप्त हुआ. अब सब इच्छाएँ मिट गयीं, बुद्ध के दर्शन करने की इच्छा भी मन में न रही.
उधर बुद्ध ने जाना कि उनके एक शिष्य को बोद्ध प्राप्त हुआ था. वह स्वयं ही रेवत से मिलने आये. उनके साथ उनके कई शिष्य भी थे. रेवत ने भी जान लिया कि भगवान् बुद्ध स्वयं आ रहे थे. उनका सम्मान  करने के लिए उसने एक आसन बना कर तैयार कर लिया.
बुद्ध के भिक्षुओं ने देखा कि जिस वन में रेवत रहता था वह वन बहुत ही सुंदर था, ऐसा सुंदर वन उन्होंने आजतक न देखा था. रेवत कि कुटिया भी बहुत सुंदर थी, स्वर्ग लोक की किसी कुटिया समान लग रही थी. जिस आसन पर बुद्ध विराजमान हुए थे वह आसन भी भव्य था और इन्द्रदेव के आसन जैसा लग रहा था.
बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कुछ दिन रेवत की कुटिया में रुके. फिर रेवत को साथ ले, वह वापस चल दिए. जैसे ही सब वन से बाहर आये तो दो भिक्षुओं को ध्यान आया कि उनका कुछ सामान रेवत की कुटिया में ही छुट गया था. वह दोनों अपना सामान लेने कुटिया की ओर चल दिए. अन्य सब बुद्ध के साथ आगे चले गए.
वन के भीतर आकर दोनों भिक्षुओं आश्चर्यचकित हो गये. उन्होंने  देखा कि जिस वन में रेवत रहता था वह वन तो बहुत भयानक जंगल था. रेवत कि कुटिया बहुत ही जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थी.  जिस आसन पर बुद्ध विराजे थे वह तो काँटों से बना था.
उत्सुक लोगों ने बुदध के भिक्षुओं से पूछा कि रेवत का आश्रम कैसा था. कुछ भिक्षुओं ने कहा कि रेवत का आश्रम तो स्वर्ग लोक के समान सुंदर था. जिस वन में रेवत रहते थे वह वन संसार का सबसे सुंदर वन था.
पर दो भिक्षुओं ने कहा कि वह वन तो बहुत ही डरावना वन था और जिस कुटिया में रेवत रहते थे वह बिलकुल टूटी-फूटी, खंडहर समान थी. जिस आसन पर बुद्ध को बिठलाया था वह काँटों का बना हुआ था.
ऐसी बातें सुन लोग असमंजस में पड़ गए. एक जगह को कुछ भिक्षुओं ने स्वर्ग समान बताया था और कुछ ने नर्क समान. लोगों ने भगवान् से जानना चाहा कि सत्य क्या था.

बुद्ध ने कहा कि जिस जगह रेवत जैसे लोग रहते हैं वह जगह स्वर्ग समान होती है. अर्थात जहां भी ज्ञानी लोग विराजते हैं वहीं स्वर्ग होता है.

सोमवार, 4 जुलाई 2016

मेरी डिग्रियॉ




बिजली की तरह कौध गया यह वाक्य
-मैं डिग्रियॉ जला दूॅ !

मेरी डिग्रियॉ सारी
बेवफा प्रेयसी के प्रेम पत्रों की तरह हैं
जो पड़ी हैं
घर के किसी कोने में
आलमारी में
मेज पर
किताबों में
सिराने तकिए के नीचे।

अविस्मरणीय यादें हैं जुड़ी
प्रेम के पुट भी हैं
व हृदय तथा मस्तिष्क
मोहपाश में फॅसकर जकड़ा हुआ
जो रोक लेती है ऐसा करने से।

अंततः मनुष्य इतना आशावान क्यों होता है ?
क्यों उन सपनों को यथार्थ जान लेता है
जिसे सरकार समाज व वक्त ने
प्रतिबन्धित कर दिया है।

वो युग और था
जब कचरे से कागज उठाकर लोग
विध्या मॉ को अनगिनत नमन करते थे
किसी तालाब
किसी कुएॅ
या किसी गंगा के घाट पर
स्नेह से जलधारा में विसर्जित करते थे
आज तो भुजा खाकर फेंक देते हैं कागज
और रौंदते हुए निकलते हैं पैरों से
ये मैं इसलिए बतला रहा हूॅ -
कि तब और अब के कागज का कीमत
आप भी जान सको।

हॉ, याद आईं डिग्रियॉ
अपितु डिग्रियॉ कागज ही हैं
दुसरे अन्य कागजों जैसी
किंतु इनका महत्व व मोल अलग है
बिल्कुल जैसे आदमी
एक ही जैसा होता है खून से मॉस से
पर गुण व चरित्र के आधार पर
महत्व व मोल भिन्न-भिन्न हो जाता है।


खैर अब तो इनके भी बुरे दिन आ गए
डिग्रियों के सफेद पन्नों पर
बेरोजगारी के कालिख छा गए
उस पर लिखित समग्र विवरण
समूचे ही धुॅधला गए।

सच कहूॅ -
मेरी डिग्रियॉ मर गईं हैं
मैं तड़प रहा हूॅ
विलाप कर रहा हूॅ
कभी उसका चेहरा निहारता हूॅ
अश्रुयुक्त ऑखों से निहारकर रख देता हूॅ
खूब रोता हूॅ
अंतिम संस्कार की तैयारी के साथ
अपनी प्यारी डिग्रियों के ।

मैं इसे जलाउॅगा ही नहीं केवल
गंगा में भी बहाउॅगा
इसके राख के ढेर को
ताकि अपने विफलता से तड़पते
इनकी बेचैन आत्माओं को
मोक्ष मिल सके।