शनिवार, 24 जून 2017

चन्द माहिया : क़िस्त 42

चन्द माहिया  :क़िस्त 42

:1:
दो चार क़दम चल कर
छोड़ तो ना दोगे ?
सपना बन कर ,छल कर

:2:
जब तुम ही नहीं हमदम
सांसे  भी कब तक
अब देगी साथ ,सनम !

:3:
जज्बात की सच्चाई
नापोगे कैसे ?
इस दिल की गहराई

:4;
सबसे है रज़ामन्दी
सबसे मिलते हो
बस मुझ पर पाबन्दी

:5:
क्या और तवाफ़ करूँ
इतना ही जाना
मन को भी साफ़ करूँ

-आनन्द.पाठक-
08800927181

शब्दार्थ
तवाफ़ = परिक्रमा करना

गुरुवार, 22 जून 2017

मेरे मन की



मेरी पहली पुस्तक "मेरे मन की" की प्रिंटींग का काम पूरा हो चुका है | और यह पुस्तक बुक स्टोर पर आ चुकी है| आप सब ऑनलाइन गाथा के द्वारा बुक कर सकते है| मेरी पहली बुक कविताओ और कहानीओ का अनुपम संकलन है|


आप सभी इसे ऑनलाइन गाथा (Online Gatha) के ऑनलाइन पोर्टल पर जाकर भी ऑर्डर कर सकते है| इसे अभी ऑर्डर करने के लीये इस लींक पर जाएं| 

इसे आप  (Snapdeal) पर भी ऑर्डर कर सकते है| इसे अभी ऑर्डर करने के लीये इस लींक पर जाएं| 


इसे आप  फ्लिपकार्ट (Flipcart) पर भी ऑर्डर कर सकते है| इसे अभी ऑर्डर करने के लीये इस लींक पर जाएं| 


इसे आप शॉपकलूस (Shopcluse) पर भी ऑर्डर कर सकते है| इसे अभी ऑर्डर करने के लीये इस लींक पर जाएं| 

इसे आप स्मशवर्ड (Smashword) पर भी ऑर्डर कर सकते है| इसे अभी ऑर्डर करने के लीये इस लींक पर जाएं| 


इसे आप एबीज़ी (Ebezee) पर भी ऑर्डर कर सकते है| इसे अभी ऑर्डर करने के लीये इस लींक पर जाएं| 



इसे आप ईबे (Ebay) पर भी ऑर्डर कर सकते है| इसे अभी ऑर्डर करने के लीये इस लींक पर जाएं| 

शुक्रिया

रविवार, 11 जून 2017

चन्द माहिया : क़िस्त 41

चन्द माहिया: क़िस्त 41

:1:

सदक़ात भुला मेरा
एक गुनह तुम को
बस याद रहा मेरा

:2:
इक चेहरा क्या भाया
हर चेहरे में वो
मख़्सूस नज़र आया

;3:
कर देता है पागल 
जब जब साने से
ढलता है तेरा आँचल

:4:
उल्फ़त की यही ख़ूबी
पार लगी उसकी
कश्ती जिसकी  डूबी

:5:
इतना ही समझ लेना
मै हूँ तो तुम हो
क्या और सनद देना


-आनन्द.पाठक-
08800927181
शब्दार्थ
सदक़ात  = [सदक़ा का बहु वचन] अच्छे कार्य  सत्कर्म .दान , न्यौछावर आदि
मख़्सूस   = ख़ास तौर से
साने से    = कंधे से
सनद       = प्रमाण-पत्र

शनिवार, 10 जून 2017

♥कुछ शब्‍द♥: तलाश___|||

♥कुछ शब्‍द♥: तलाश___|||: वह बेज़ान पड़ी घूर रही है घर की दीवारों को कभी छत को कभी उस छत से लटक रहे पंखे को उसकी नजरें तलाश रहीं है आज  उन नजरों में परवाह जरा सी अपने ...

शनिवार, 3 जून 2017

♥कुछ शब्‍द♥: इक सफर___|||

♥कुछ शब्‍द♥: इक सफर___|||: मासूम सा प्रेम मेरा  परिपक्य हो गया  वक़्त के थपेड़ो से  सख्त हो गया  किया न गया तुमसे कदर इस दिल का  आंखे देखों मेरी  सुखकर बंजर हो ग...

गुरुवार, 1 जून 2017

एक ग़ज़ल : ज़िन्दगी न हुई----

एक ग़ज़ल : ज़िन्दगी ना हुई बावफ़ा आजतक------

ज़िन्दगी   ना  हुई  बावफ़ा आज तक
फिर भी शिकवा न कोई गिला आजतक

एक चेहरा   जिसे  ढूँढता  मैं  रहा
उम्र गुज़री ,नहीं वो मिला  आजतक

दिल को कितना पढ़ाता मुअल्लिम रहा
इश्क़ से कुछ न आगे पढ़ा  आजतक

एक जल्वा नुमाया  कभी  ’तूर’ पे
बाद उसके कहीं ना दिखा आज तक

आप से क्या घड़ी दो घड़ी  मिल लिए
रंज-ओ-ग़म का रहा सिलसिला आजतक

  एक निस्बत अज़ल से रही आप से
राज़ क्या है ,नहीं कुछ खुला आजतक

तेरे सजदे में ’आनन’ कमी कुछ तो है
फ़ासिला क्यों नहीं कम हुआ आजतक ?


-आनन्द.पाठक--
08800927181

शब्दार्थ
मुअल्लिम =पढ़ानेवाला ,अध्यापक
नुमाया = दिखा/प्रकट
तूर = एक पहाड़ का नाम जहाँ ख़ुदा
ने हजरत मूसा से कलाम [बात चीत] फ़र्माया था
निस्बत =संबन्ध
अज़ल =अनादि काल से