एक ग़ज़ल : क़ातिल के हक़ में ---
क़ातिल के हक़ में लोग रिहाई में आ गए
अंधे भी चश्मदीद गवाही में आ गए
तिनका छुपा हुआ है जो दाढ़ी में आप के
पूछे बिना ही आप सफ़ाई मे आ गए
कुर्सी का ये असर है कि जादूगरी कहें
जो राहज़न थे राहनुमाई में आ गए
अच्छे दिनों के ख़्वाब थे आँखों में पल रहे
आई वबा तो दौर-ए- तबाही में आ गए
मुट्ठी में इन्क़लाब था सीने में जोश था
वो सल्तनत की पुश्तपनाही में आ गए
बस्ती जला के सेंक सियासत की रोटियाँ
मरहम लिए वो रस्म निबाही में आ गए
ऐ राहबर ! क्या ख़ाक तेरी रहबरी रही
हम रोशनी में थे कि सियाही में आ गए
’आनन’ तू खुशनसीब है पगड़ी तो सर पे है
वरना तो लोग बेच कमाई में आ गए
-आनन्द.पाठक-
वबा = महामरी
पुश्तपनाही = पॄष्ठ-पोषण,हिमायत
सियाही में = अँधेरे में
मरहम = मलहम
क़ातिल के हक़ में लोग रिहाई में आ गए
अंधे भी चश्मदीद गवाही में आ गए
तिनका छुपा हुआ है जो दाढ़ी में आप के
पूछे बिना ही आप सफ़ाई मे आ गए
कुर्सी का ये असर है कि जादूगरी कहें
जो राहज़न थे राहनुमाई में आ गए
अच्छे दिनों के ख़्वाब थे आँखों में पल रहे
आई वबा तो दौर-ए- तबाही में आ गए
मुट्ठी में इन्क़लाब था सीने में जोश था
वो सल्तनत की पुश्तपनाही में आ गए
बस्ती जला के सेंक सियासत की रोटियाँ
मरहम लिए वो रस्म निबाही में आ गए
ऐ राहबर ! क्या ख़ाक तेरी रहबरी रही
हम रोशनी में थे कि सियाही में आ गए
’आनन’ तू खुशनसीब है पगड़ी तो सर पे है
वरना तो लोग बेच कमाई में आ गए
-आनन्द.पाठक-
वबा = महामरी
पुश्तपनाही = पॄष्ठ-पोषण,हिमायत
सियाही में = अँधेरे में
मरहम = मलहम