[डायरी के पन्नों से----]
शनिवार, 28 नवंबर 2020
एक गीत : मेरी देहरी को ठुकरा कर जब---
एक गीत : मेरी देहरी को ....
मेरी देहरी को ठुकरा कर जब जाना है
फिर बोलो वन्दनवार सजा कर क्या होगा ?
आँखों के नेह निमन्त्रण की प्रत्याशा में
आँचल के शीतल छाँवों की अभिलाषा में
हर बार गईं ठुकराई मेरी मनुहारें-
हर बार ज़िन्दगी कटी शर्त की भाषा में
जब अँधियारों की ही केवल सुनवाई हो
फिर ज्योति-पुंज की बात चला कर क्या होगा ?
तुम निष्ठुर हो ,तुम प्रणय समर्पण क्या जानो !
दो अधरों की चिर-प्यास भला तुम क्या जानो !
क्यों लगता मेरा पूजन तुमको आडम्बर ?
हर पत्थर में देवत्व छुपा तुम क्या जानो !
जब पूजा के थाल छोड़ उठ जाना ,प्रियतम !
फिर अक्षत-चन्दन ,दीप जला कर क्या होगा ?
मेरी गीता के श्लोक तुम्हें क्यों व्यर्थ लगे ?
मेरे गीतों के दर्द तुम्हें असमर्थ लगे
जीवन-वेदी माटी की है पत्थर की नहीं
क्यों तुमको ठोकर लगे ,तुम्हें अभिशप्त लगे?
जब हवन-कुण्ड की ज्योति जली बुझ जानी है
फिर ऋचा मन्त्र का पाठ सुना कर क्या होगा !
मेरी देहरी को ठुकरा कर .............
-आनन्द पाठक-
बुधवार, 25 नवंबर 2020
एक व्यंग्य- साहित्यिक खोमचा
एक व्यंग्य :साहित्यिक खोमचा
"यार मिश्रा ! सोच रहा हूँ ,एक खोमचा मैं भी लगा लूँ ’।
’खोsssमचा ?? क्या ?क्या ? क्यों?’-अंधे को अँधेरे में बड़ी दूर की सूझी ? -मिश्रा जी अचानक मेरे इस अप्रत्याशित प्रस्ताव से चौंक गए -"पेन्शन बन्द हो गई क्या?’ खोमचा किसका ? दही-भल्ले का?, ’चनाजोर गरम का"?
साहित्य का ,’साहित्यिक खोमचा ’- ।मैने समझाया-"रिटायर होने के बाद खाली बैठा था सोचा टाइम पास हो जायेगा और हिन्दी की कुछ सेवा भी हो जाएगी ।
आम का आम गुठलियों का दा्म भी हो जायेगा । -
-गुठलियों का दाम ?? अच्छा तो हिन्दी की सेवा में भी ’दाम ’? व्यापार ?-मिश्राजी ने कहा-’ वैसे ही कम लोग हैं क्या हिंदी के सेवा करने को ,जो अब तुम चले हो।
ग्राहक कहाँ मिलेंगे ? पानी-पूरी के ,भेल पूरी के तो शायद मिल भी जाय । साहित्यिक ’खोमचे’ के लिए कहाँ मिलेंगे ?
-मिलेंगे मिश्रा ,,खूब मिलेंगे ! फ़ेसबुक,व्हाटसअप पर हर दिन कोई न कोई मंच ,महफ़िल ,ग्रुप बना रहा है । कभी कविता के नाम पर ,कभी ग़ज़ल के नाम पर ,कभी अदब के नाम पर ,कभी साहित्य के नाम पर ।
मेरे उस्ताद ने कहा था बेटा ! तू जहाँ भी खोमचा लगा देगा ,वहीं 2-4-10 ग्राहक मिल जायेंगे। फ़ेसबुक पर ,ह्वाट्स पर,ट्विटर पर ,ब्लाग पर हर दूसरा आदमी ग़ज़ल कह रहा है , शायरी कर रहा है ,दोहा लिख रहा है ,सबको ’चाट’ की तलब है,छपने की ललक है।लिखने की ठनक है। वाह वाह सुनने की ठसक है। मैं भी फ़ेसबुक पर ,’व्हाट्स ’ पर एक मंच बनाऊँगा ।
-तो उससे क्या होगा ?
हिन्दी की सेवा होगी और क्या ? ग्रुप और मंच बनाने में कौन सा पैसा लगता है । मैं ’ऎडमिन’ बन जाऊँगा बैठे बैठाए ।शान-ओ-शौकत ऊपर से । न हर्रे लगे न फिटकरी, रंग बने चोखा ।
-तो उससे क्या होगा ?
हिन्दी की सेवा होगी और क्या ? जिसको चाहे ग्रुप में जोड़ लो --जिसको चाहे ग्रुप से लतिया दो --आत्मसुख मिलता है । जिसको चाहे सम्मनित कर दो , जिसकी
चाहे टाँग खिंचाई कर लो --
-तो उससे क्या होगा ?
हिंदी की सेवा होगी और क्या । जिसको चाहे उसको ’वरिष्ठ कवि’ कह दो --अज़ीमुश्शान शायर कह दो ।उत्साहवर्धन के नाम पर सबके कलाम को वाह वाह करते रहो । उम्दा कलाम । लाजवाब कविता । यह सब करने का समय न मिले तो एक ही झाड़ू से -सबका कलाम उम्दा’- कर दो जैसे पंडित लोग एक ही मन्त्र से -" सर्व देवेभ्यो नम: स्वाहा - कर देते हैं। अपने सदस्यों का सम्मान करूँगा तो ग्रुप का सम्मान होगा। ग्राहक भागेंगे नहीं । उनकी पुस्तकों का विमोचन करवाएँगे -- सहयोग राशि लेकर साझा-संग्रह प्रकाशित करवाएँगे--सम्मान समारोह करवाएँगे- ग़ज़ल सम्राट की उपाधि देंगे--काव्य चेतना शिरोमणि पुरस्कार देंगे---हिंदी सेवा का प्रमाण-पत्र बेंचेंगे -दो-चार पैसे तो बच ही जाएँगे ।
-अच्छा ! तो आप इसी गुठलियों के दाम की बात कर रहे थे ? तो हिंदी की सेवा ?? ऎसे मंचों पर किसी को भाषा की शुद्धता की चिन्ता नहीं ।,वर्तनी का खयाल नहीं--वाक्य विन्यास पर ध्यान नहीं । जो बोल दिया वही हिंदी, जो लिख दिया वही साहित्य । छपने की प्यास है। सभी जल्दी में है ।-मिश्रा जी ने अपनी व्यथा उड़ेली
भई मिश्रा !पहले दाम फिर काम । हिंदी की सेवा तो भारत सरकार कर रही है न पिछले 65-70 साल से । 14-सितम्बर है न इस काम के लिए।हाथी के पाँव में सबका पाँव।
भई पाठक ! एक सलाह दूँ ? हिंदी पर बड़ी कृपा होगी -मिश्रा जी ने कहा
हाँ हाँ !-मैने चहकते हुए कहा-"कहो मित्रवर !कहो ! नि:संकोच कहो !
-तुम तो बस खोपचे में एक खोमचा लगा ही लो । हिंदी सेवा का नही , ’चनाजोर’ गरम का ।गाते हुए बेचोगे तो ज़्यादा बिक्री होगी ज़्यादा फ़ायदा होगा।
चनाजोर गरम बाबू मैं
लाया मजेदार -चना जोर गरम
मेरा चना बना है आला
मैने डाला गरम मसाला
मेरा चना बना चुटकुल्ला
जिसको खाए हाजी मुल्ला--चना जोर गरम ।
इससे पहले कि मैं अपनी "चरण-पादुका " ढूँढता , उससे पहले ही मिश्रा जी नौ दो ग्यारह हो गए ।
-अस्तु-
-आनन्द.पाठक-
शुक्रवार, 20 नवंबर 2020
चन्द माहिए
चन्द माहिए --
:1:
तुम से गर जुड़ना है
मतलब है इस का
बस ख़ुद से बिछुड़ना है
:2:
आने को आ जाऊँ
रोक रहा कोई
कैसे मैं ठुकराऊँ ?
:3:
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत है
जिस के लिए मेरी
दुनिया से अदावत है
:4;
दीदार हुआ जब से
जो भी रहा बाक़ी
ईमान गया तब से
5
जब तू ही मेरे दिल में
ढूँढ रहा हूँ मैं
फिर किस को महफ़िल में ?
-आनन्द.पाठक-
शुक्रवार, 13 नवंबर 2020
एक गीत : दीपावली पर
एक गीत : दीपावली पर-2020
आज दीपावली की है पावन घड़ी
प्रेम का दीप जलता रहे उम्र भर
दिल में खुशियाँ हैं,उल्लास है,प्यार है
रात भी रोशनी से नहाई हुई
और तारे गगन में परेशान हैं
चाँद -सी कौन है,छत पे आई हुई ?
लौ लगी है तो बुझने न पाए कभी
मैं भी रख्खूँ नज़र,तुम भी रखना नज़र
दीप महलों में या झोपड़ी में जले
एक सी रोशनी सबको मिलती सदा
एक दीपक जला कर रखो राह में
सब को मिलता रहे रोशनी का पता
हो अँधेरा जहाँ ,दीप रखना वहीं
हर गली मोड़ पर हर नगर हर डगर
द्वेष ,नफ़रत की दिल में लगी आग हो
तो जलाती रहेगी तुम्हे उम्र भर
यह अँधेरा मिटेगा क्षमा प्यार से -
प्रीति की ज्योति दिल में जला लो अगर
प्रेम,करुणा, दया दिल में ज़िन्दा रहे
और चलता रहे रोशनी का सफ़र
आज दीपावली की है पावन घड़ी, प्रेम का दीप जलता रहे उम्र भर
-आनन्द.पाठक-