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बुधवार, 9 मार्च 2022

एक ग़ज़ल

 

एक ग़ज़ल

 

गुमराह हो गया तू बातों में किसकी आ कर ,
दिल राहबर है तेरा, बस दिल की तू सुना कर ।   


किसको पुकारता है पत्थर की बस्तियों में ,
खिड़की नहीं खुलेगी तू लाख आसरा कर ।       


मिलना ज़रा सँभल कर, बदली हुई हवा है ,
हँस कर मिलेगा तुमसे ख़ंज़र नया छिपा कर ।         


जब सामने खड़ा था भूखा ग़रीब कोई ,
फिर ढूँढता है किसको दैर-ओ-हरम में जाकर ।    


मौसम चुनाव का है ,वादे तमाम वादे ,
लूटेंगे ’वोट’ तेरा ,सपने दिखा दिखा कर ।        


मेरा जमीर मुझको देता नहीं इजाज़त ,
सम्मान’ मैं कराऊँ ,महफ़िल सजा सजा कर ।    


आनन’ तेरी ये ग़ैरत अब तक नहीं मरी है,
रखना इसे तू ज़िन्दा हर हाल में बचा कर ।      

 


-
आनन्द.पाठक-

 

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