शुक्रवार, 29 मार्च 2024
"डायमांटे कविता"
शनिवार, 16 मार्च 2024
अपनी अपनी सब ने कही है
अपनी अपनी सबने कही है
सब को लगता है वो सही है
धुआं चिलम चिता और चिंता
आंखों से कब सब नदी बही है
कच्चे रिश्ते , कच्चे वादें
कच्ची जो हो, दीवार ढही है
बेटे होंगे आंखों के तारें
बिटिया पावन धाम खुद ही है
काम क्रोध लोभ और माया
क्यों हर जीवन का सार यही है
पाप पुण्य का लेखा जोखा
रब के पास सब खाता बही है
छुप जाओ तुम चाहे ख़ुद से
'उसकी ' आंखें देख रही है
~संध्या
सोमवार, 11 मार्च 2024
चाँदनी महल
का
रहस्य
पोस्ट-कार्ड
रजत
आठवीं
कक्षा
का
छात्र
था.
एक
दिन
वह
स्कूल
से
घर
लौट
रहा
था.
स्कूल
घर
से
अधिक
दूर
न
था
इसलिए
वह
पैदल
ही
स्कूल
आया-जाया
करता
था.
रास्ते
में
उसने
एक
जगह
एक
पोस्ट-कार्ड
पड़ा
देखा.
कुछ
सोचे
बिना
ही
उसने
वह
पोस्ट-कार्ड
उठा
लिया.
पोस्ट-कार्ड
किसी
दुर्गा
सिंह
के
नाम
भेजा
गया
था.
एक
पल
के
लिए
रजत
को
लगा
कि
उसे
किसी
और
का
पोस्ट-कार्ड
उठाना
नहीं
चाहिए
था.
उसने
पोस्ट-कार्ड
को
उसी
जगह
रख
देने
की
बात
सोची.
पर
फिर
न
जाने
क्यों
उसका
मन
हुआ
कि
पत्र
पढ़
कर
देखे
कि
उसमें
लिखा
क्या
था.
वह
पत्र
पढ़ने
लगा,
पत्र
में
लिखा
था:
‘तुम्हें
तो
पता
ही
है
कि
मेरे
पास
माँ
का
कोई
भी
चित्र
नहीं
है.
यह
बात
मुझे
बहुत
खलती
है.
माँ
का
एक
चित्र
शायद
पिताजी
ने
कभी
बनवाया
था
और
उन्होंने
उस
चित्र
को अच्छे से
फ्रेम
भी
करवाया
था.
क्या
तुम्हें
उस
तस्वीर
के
बारे
में
कोई
जानकारी
है?
और
अगर
वह
घर
में
कहीं
है
तो
उसे
ले
अपने
साथ आओ.
विश्वास
करो
हमारे
लिए
वह
तस्वीर
बहुमूल्य
है.’
‘रोचक
पत्र
है.
लेकिन
पत्र
लिखने
वाले
ने
अपना
नाम
नहीं
लिखा
है,
ऐसा क्यों?
शायद
भूल
गया
होगा.
या
कुछ और बात है?’ उसने
मन
ही
मन
कहा.
उसके
मन
में
आया
कि
डाकिये
ने
यह
पत्र
गलती
से
रास्ते
में
गिरा
दिया
होगा.
‘क्यों
न
मैं
ही
जाकर
यह
पत्र
दुर्गा
सिंह को दे आऊँ?’ उसने
सोचा.
उसने
पता
देखा,
पता
था:
चाँदनी
महल,
चौड़ी
सड़क,
राज
नगर.
यह
जगह
उसके
घर
से
ज़्यादा
दूर
न
थी.
उसने
तय
किया
कि
दुपहर
बाद
माँ
को
बता
कर
वह
पत्र
चाँदनी
महल
में
दे
आयेगा.
शाम
होने
से
पहले
माँ
को
बता
कर
वह
पत्र
देने
चल
दिया.
राज
नगर
पहुँच
कर
वह
चौड़ी
सड़क
आ
गया.
उसने
कई
घरों
के
बाहर
लगी
नाम
पट्टियाँ
देखी.
पर
किसी
पट्टी
पर
‘चाँदनी
महल’ न
लिखा
था.
एक
जगह
उसने
एक
पान
वाले
की
छोटी
सी
दुकान
देखी,
वह
उस
पान
वाले
के
पास
आया
और
बोला,
“क्या
आपको
पता
है
कि
चाँदनी
महल
कहाँ
है?”
पान
वाले
ने
उसे
घूर
कर
देखा.
फिर
उसने
कहा,
“क्यों?
तुम्हें
क्या
काम
हैं
वहाँ?”
रजत
पान
वाले
को
पोस्ट-कार्ड
के
बारे
में
बताने
ही
वाला
था
कि
उसके
मन
में
आया,
‘मैं इसे
क्यों
कुछ
बताऊँ?
इसने
प्रश्न
किस
ढंग
से
किया
था?
और
किस
तरह
मुझे
घूर
कर
देख
रहा
है.
नहीं,
इसे
कुछ
बताने
की
आवश्यकता
नहीं
है.’
उसने
कहा,
“मैं
वह
महल
देखना
चाहता
हूँ.
मेरा
एक
मित्र
इधर
रहता
है.
उसने
कहा
था
कि
यहाँ
एक
पुराना
महल
है,
किसी
राजा
का.
शायद
चाँदनी महल ही वह महल है.”
“मज़ाक
कर
रहा
होगा
वह,” पान
वाले
न
कहा
और
फिर
हाथ
से
एक
घर
की
ओर
संकेत
किया.
चाँदनी
महल
सड़क
के
दूसरी
ओर
दुकान
से
थोड़ी
दूरी
पर
ही
था.
चाँदनी
महल
नाम
की
ही
महल
था.
वह
एक
साधारण
सा मकान था, एक पुरानी-सी
दो
मंज़िला
हवेली
थी.
हवेली
के
चारों
ओर
चार-पाँच
फुट
ऊंची
दीवार
थी.
सामने
लोहे
का
गेट
था
जिस पर शायद वर्षों से पेंट नहीं हुआ था. चारदीवारी
के
भीतर
हर
तरफ
घास
और
झाड़ियाँ
दिखाई
दे
रही
थीं.
हवेली
के
पीछे
एक
विशाल
पेड़
भी
था.
चाँदनी
महल
पूरी
तरह
सुनसान
लग
रहा
था.
ऐसा
लगता
था
जैसे
महीनों
से
उसका
गेट
भी
न
खोला
गया
हो.
रजत
को
यह
सब
विचित्र
लगा.
उसने
आसपास
देखा.
वहाँ
कोई
भी
न
था
सिवाय
एक
भिखारी
के
जो
चाँदनी
महल
के
सामने
बैठा
भीख
मांग
रहा
था.
‘अगर
यहाँ
कोई
रहता
नहीं
है
तो
यह
पत्र
इस
पते
पर
क्यों
भेजा
गया?’ रजत
ने
सोचा.
उत्सुकतावश
रजत
ने
लोहे
का
गेट
थोड़ा-सा
खोला
और
चाँदनी महल की चारदीवारी के अंदर
आ
गया.
©आइ बी अरोड़ा
कहानी का दूसरा भाग अगले अंक में प्रकाशित किया जायेगा