नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके है आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह दूरिया आकाश की ..
इस कदर भटकें हैं युबा आज के इस दौर में
खोजने से मिलती नहीं अब गोलियाँ सल्फास की
आज हम महफूज है ,क्यों दुश्मनों के बीच में
दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की
बँट गयी सारी जमी ,फिर बँट गया ये आसमान
क्यों आज फिर हम बँट गए ज्यों गड्डियाँ हो तास की
हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
अब हर कोई कहने लगा है आरजू बनवास की
मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी दुनिया, है बिरोधाभास की
मदन मोहन सक्सेना
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति !
latest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
आभारी हूँ
हटाएंसुंदर साधुवाद
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ
हटाएंबहुत बढ़िया आदरणीय मदन जी-
जवाब देंहटाएंआप की हार्दिकता सदैव कुछ न कुछ नया करने को प्रेरित करती है | प्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसाझा करन् के् लिए आभार।
आभारी हूँ
हटाएंसुन्दर रचना ...सादर
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ
हटाएंसच ही तो है दोस्त ये दुनिया विरोधाभास की,
जवाब देंहटाएंयही तो है ईश-माया जो न दिल से जा सकी |
प्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ
हटाएंआदरणीय सुन्दर रचना की बधाई !
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ
हटाएंआभारी हूँ
जवाब देंहटाएंआप की हार्दिकता सदैव कुछ न कुछ नया करने को प्रेरित करती है | प्रतिक्रियार्थ आभारी हूँ
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