शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

मानव तुम ना हुए सभ्य




आज भी कई
होते चीरहरण
कहाँ हो कृष्ण
                ***
रही चीखती
क्यों नहीं कोई आया
उसे बचाने
                ***
निर्ममता से
तार-तार इज्ज़त
करें वहशी
                ***
हुआ वहशी
खो दी इंसानियत
क्यों आदमी ने
                ***
तमाम भय
असुरक्षित हम
कैसा विकास
                ***
कैसी ये व्यथा
क्यों रहे जानवर
पढ़-लिख के
                ***
वामा होने की
कितनी ही दामिनी
भोगतीं सज़ा
                ***
बेबस नारी
अजीब-सा माहौल
कैसा मखौल
                ***
ओ रे मानव
कई युग बदले
हुआ ना सभ्य
                ***

4 टिप्‍पणियां:

  1. ओ रे मानव़, युग बदले हुआ ना सभ्य ।

    बहुतत सही कहा ।

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  2. मानव = स्त्री + पुरुष .... कोइ सभ्य न हुआ .. फिर क्या कहा जाय ...किसे दोष दें ...जब सभ्य ही नहीं हुआ तो युग कहाँ बदले....

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  3. Albert Einstein---ने क्या नया कहा .... भारतीय शास्त्रीय ज्ञान में सदा ही कहा गया है कि ....यह संसार सपन की माया ...मोक्ष हेतु जीले तू प्राणी....

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