मंगलवार, 27 अगस्त 2013

कृष्ण लीला ...डा श्याम गुप्त के पद...

 १.
तेरे कितने रूप गोपाल ।
सुमिरन करके कान्हा मैं तो होगया आज निहाल ।
नाग-नथैया,  नाच-नचैया,  नटवर,  नंदगोपाल 
मोहन, मधुसूदन, मुरलीधर, मोर-मुकुट, यदुपाल ।
चीर-हरैया,    रास -रचैया,     रसानंदरस पाल ।
कृष्ण-कन्हैया, कृष्ण-मुरारी, केशव, नृत्यगोपाल |
वासुदेव, हृषीकेश, जनार्दन, हरि, गिरिधरगोपाल |
जगन्नाथ, श्रीनाथ, द्वारिकानाथ, जगत-प्रतिपाल |
देवकीसुत,रणछोड़ जी,गोविन्द,अच्युत,यशुमतिलाल |
वर्णन-क्षमता  कहाँ 'श्याम की,  राधानंद, नंदलाल |
माखनचोर, श्याम, योगेश्वर, अब काटो भव जाल ||

२.
ब्रज की भूमि भई है निहाल |

सुर गन्धर्व अप्सरा गावें नाचें दे दे ताल |

जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |

पुरजन परिजन हर्ष मनावें जनम लियो नंदलाल |

आशिष देंय विष्णु शिव् ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |

बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा नाचहिं ब्रज के बाल |

गोप गोपिका करें आरती,  झूमि  बजावैं  थाल |

आनंद-कन्द प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज-ग्वाल |

सुर दुर्लभ छवि निरखे लखि-छकि श्याम’ हू भये निहाल ||



३.
कन्हैया उझकि उझकि निरखे |

स्वर्ण खचित पलना चित-चितवत केहि विधि प्रिय दरसै |

जहँ पौढ़ी वृषभानु लली, प्रभु दरसन कौं तरसै |

पलक पांवड़े मुंदे सखी के, नैन कमल थरकैं |

कलिका सम्पुट बंध्यो भ्रमर ज्यों, फर फर फर फरके |

तीन  लोक दरसन कौं तरसें,  सो दरसन तरसै |

ये तो नैना बंद किये हैं,  कान्हा  बैननि परखे |

अचरज एक भयो ताही छिन,  बरसानौ सरसे |

खोली दिए दृग भानुलली,मिलि नैन, नैन हरषे| 

दृष्टिहीन माया, लखि दृष्टा, दृष्टि खोलि निरखे|

बिन दृष्टा के दर्श श्याम, कब जगत दीठ बरसै ||
४.

बाजै रे पग घूंघर बाजै रे ।

ठुमुकि ठुमुकि पग नचहि कन्हैया, सब जग नाचै रे ।

जसुमति अंगना कान्हा नाचै, तोतरि बोलन गावै ।

तीन लोक में गूंजे यह धुनि, अनहद तान गुंजावै ।

कण कण सरसे, पत्ता पत्ता,  हर प्राणी हरषाये  |

कैसे न दौड़ी आयं गोपियाँ घुँघरू चित्त चुराए |

तारी  दे  दे लगीं नचावन, पायलिया छनकैं  |

ढफ ढफली खड़ताल मधुर-स्वर,कर कंकण खनकें |

गोल बनाए गोपी नाचें,  बीच नचें नंदलाल  |

सुर दुर्लभ लीला आनंद मन जसुमति होय निहाल |

कान्हा नाचे ठुम्मक ठुम्मक तीनों लोक नचावै रे |

मन आनंद चित श्याम’, श्याम की लीला गावै रे ||

५.

कैसी लीला रची गुपाल |

लूटि लूटि दधि माखन खावें, छकि हरषें गोपाल ।

क्यों हमकों दधि माखन वर्जित, मथुरा नगर पठावैं ।

धन सम्पदा ग्राम घर घर की, नंद्लाल समुझावैं ।

नीति बनाऔ दधि माखन जो मथुरा लेकर जाय ।

फ़ोडि गगरिया लूटि लेउ सब, नगर न पहुंचन पाय ।

हम बनिहैं बलवान सन्गठित, रक्षित सब घर द्वार ।

श्याम’ ग्राम सम्पन्न सुखी हों सहैं न अत्याचार  ॥

६.
को तुम कौन कहाँ ते आई
पहली बेरि मिली हो गोरी ,का ब्रज कबहूँ आई
बरसानो है धाम हमारो, खेलत निज अंगनाई
सुनी कथा दधि -माखन चोरी , गोपिन संग ढिठाई
हिलि-मिलि चलि दधि-माखन खैयें, तुमरो कछु चुराई।
मन ही मन मुसुकाय किशोरी, कान्हा की चतुराई
चंचल चपल चतुर बतियाँ सुनि राधा मन भरमाई
नैन नैन मिलि सुधि बुधि भूली, भूलि गयी ठकुराई
हरि-हरि प्रिया, मनुज लीला लखि,सुर नर मुनि हरसाई
 ७.

राधा रानी दर्पण निरखि सिहावैं |

आपुहि लखि, आपुहि की शोभा, आपुहि आपु लजावें |

आदि-शक्ति धरि माया छवि ज्यों माया भरम सजावै |

माया ही माया से लिपटे,  माया  भ्रम  उपजावै |

माया ते जग-जीवन उपजे,  जीवन मरम  बतावै |

ताही छिन छवि श्याम की उभरी, राधा लखि सकुचावै |

इत-उत चहुँ दिशि ढूँढन लागी, कान्हा कतहु न पावै |

कबहु आपु छवि, कबहु श्याम छवि, लखि आपुहि भरमावै |

समुझ श्याम-लीला, भ्रम आपुन, मन ही मन मुसुकावै |

ब्रह्म की माया, माया नाचे, जीवन-जगत  नचावै |
माया-ब्रह्म लीला-कौतुक लखि, श्याम’ सहज सुख पावै || 
८.

कान्हा तेरी वंसी मन तरसाए |

कण कण ज्ञान का अमृत बरसे, तन मन सरसाये |
ज्योति दीप मन होय प्रकाशित, तन जगमग कर जाए |
तीन लोक में गूंजे यह ध्वनि,  देव दनुज मुसकाये |
पत्ता-पत्ता, कलि-कलि झूमे, पुष्प-पुष्प खिल जाए |
नर-नारी की बात कहूँ क्या, सागर उफना जाए |
बैरन छेड़े तान अजानी , मोहनि  मन्त्र चलाये |
राखहु


श्याम’ मोरी मर्यादा, मुरली मन भरमाये ||

  ९.
मुरली काहे बजाओ घनश्याम।

सुबह सवेरे मुरली बाजे , गूंजे आठों याम।

स्वर रस टपके सब जग भीजे, उपजे भाव ललाम।

रस टपके उर गोप-गोपिका, बाढे प्रीति अनाम

रस भीजे मेरी सूखी लकडियां, सास करे बदनाम

श्याम की वन्शी बजे जलाये,पिय मन सुबहो शाम।
पोर-पोर कान्हा को बसाये, नस-नस राधे-श्याम

१०.

काहे मन धीर धरे घनश्याम |
तुम जो कहत ,हम एक विलगि कब हैं राधे श्याम
फ़िर क्यों तडपत ह्रदय जलज यह समुझाओ हे श्याम !
सान्झ होय और ढले अर्क, नित बरसाने घर-ग्राम
जावें खग मृग करत कोलाहल अपने-अपने धाम।
घेरे रहत क्यों एक ही शंका मोहे सुबहो-शाम।
दूर चले जाओगे हे प्रभु! , छोड़ के गोकुल धाम
कैसे विरहन रात कटेगी , बीतें आठों याम
राधा की हर सांस सांवरिया , रोम रोम में श्याम।
श्याम', श्याम-श्यामा लीला लखि पायो सुख अभिराम

१०.
राधे काहे धीर धरो
मैं पर-ब्रह्म ,जगत हित कारण, माया भरम परो
तुम तो स्वयं प्रकृति -माया ,मम अन्तर वास करो।
एक तत्व गुन , भासें जग दुई , जगमग रूप धरो।
राधा -श्याम एक ही रूपक ,विलगि भाव भरो।
रोम-रोम हर सांस सांस में , राधे ! तुम विचरो
श्याम; श्याम-श्यामा लीला लखि,जग जीवन सुधरो।

११.

काहे मुरली श्याम बजाये
सांझ सवेर बजे मुरलिया, अति ही रस बरसाये
रस बरसे मेरो तन-मन भीगे,अन्तर घट सरसाये
रस भीगे चूल्हे की लकडी, आग पकड नहिं पाये
फ़ूंक-फ़ूंक मोरा जियरा धडके चूल्हा बुझ बुझ जाये।
सास ननद सब ताना मारें, देवर हंसी उडाये
सज़न प्रतीक्षा करे खेत पर, भूखा पेट सताये
श्यामबने कैसे मोरी रसोई, श्याम उपाय बताये
वैरिन मुरली श्याम अधर चढि, तीनों लोक नचाये
 

 १२.
ऊधो ! ज्ञान कहौ समुझाय |
कस नचिहै, कस धेनु चरावे, कैसे माखन खाय |
कहो, सुने बाकी मुरली धुनि, गोकुल गाय रम्भाय |
कंकर मारि मटुकिया फोड़े, कैसें  दधि  फैलाय  |
मैया के आँगन में कैसे नचि-नचि जिय भरमाय |
का गोपिन संग रास रचावै, का  वो चीर चुराय  |
कालियनाग को नाथ सके का, फन-फन वेणु बजाय |
श्याम’ कहो ऊधो, का गिरि कौं उँगरी लेय  उठाय ||







 




7 टिप्‍पणियां:

  1. घुंघ राले केश वारे।,मधुसूदन राक्षस का वध करने वाले ,गोवर्धन को कनिष्ठा से उठाने वाले गिरी धर की अच्छी नाम वन्दना की है आपने। श्याम पदावली भी उत्तम। साधुवाद आपक डॉ साहब। जग जग जियो अंधियारे को दूर करने वाले श्याम। जन्माष्टमी मुबारक।

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    1. धन्यवाद वीरेन्द्र जी.....जय कन्हैया लाल की ....

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  2. घुंघ राले केश वारे।,मधुसूदन राक्षस का वध करने वाले ,गोवर्धन को कनिष्ठा से उठाने वाले गिरी धर की अच्छी नाम वन्दना की है आपने। श्याम पदावली भी उत्तम। साधुवाद आपक डॉ साहब। जग जग जियो अंधियारे को दूर करने वाले श्याम। जन्माष्टमी मुबारक।

    जुग -जुग जियो अंधियारा मिटाने वाले श्याम (कृष्ण गोपाल बोले तो जिसने अपनी इन्द्रियों को वश में करके पालतू बना लिया है ).

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    1. सही कहा तभी तो वह अच्युत ..योगेश्वर है.....

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    सभी पाठकों को चर्चा मंच परिवार की ओर से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बुधवार (28-08-2013) को रूपया छा-सठ में फँसा, उन-सठ से हैरान: चर्चा मंच 3051 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. धन्यवाद शास्त्रीजी.... जय श्याम सुन्दर की....

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  4. धन्यवाद दर्शन जी....जय कान्हा नन्द किशोर की....

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