रविवार, 1 सितंबर 2013

मनवता मे भेद मिटे..

अल्पसंख्यक --
बने बहुसंख्यक //
बहुसंख्यक  हैं अल्प/

जाने फिर से कब होगा?
देश का कायाकल्प//


मानव एक रहे  कहाँ?
सब मे व्याप्त है छेद/
मनुष्य- मनुष्य  मे ..

ना जने कितने  भेद//

कोई यहाँ सिंह बने..
कोइ कहते शर्मा जी/
क्रिया करम ना एक से ..
चाहे हो हों विश्व्कर्मा जी//


कोई यहाँ बैठा है..
कोई कहलाता है राम/
जात- पातके चंगुल मे..

फंस  के हुआ देश गुलाम//

रंग खून के नही अनेक..
एक बिमारी एक दवा/
लेते हैं साथ सभी..   

 एक पानी एक हवा//
 

नहीं शिकायत मानवता से..
हो सबकी सबको खैर/
मनवता मे भेद मिटे..
ना राय किसिसे वैर//
--------------श्री राम रॉय


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