शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

एक बार फिर....

चलो फिर एक बार
अनजान हो जाए

मिटा दें वो सभी यादें
जो केवल हमारी—तुम्हारी थी
जिनमें सिर्फ मैं और तुम थे

कॉफी के साथ हुई उन
हज़ारों बातों को भुलाकर
फिर मंगाते है उम्मीदों की 
कॉफी का एक नया—ताजा कप

और हां इस बार कॉफी में 
शक्कर मैं मिलाउंगी
तुम अक्सर कंजूसी कर 
जाते हो

चलो फिर एक शुरूआत करें
अनजान बन कर

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर.अच्छी रचना.रुचिकर प्रस्तुति .; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ
    कभी इधर भी पधारिये ,

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  2. भाव स्तर पर अच्छी रचना ,पुराना छोड़ आगे बढ़ो ,कुछ नया करो और अभी करो।

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  3. पुराने रास्ते से निकलने का यही तरीका है -अच्छी रचना
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