मंगलवार, 24 सितंबर 2013

कृष्ण की अनंत शक्तियों पर राज्य करने वाली एक लाजिमी शक्ति है। उससे भी ऊपर प्रेम की शक्ति है। प्रेम से भी ऊपर एक महा -अनुभाव शक्ति है। इसके भी दो विभाग हैं :

राधा तत्व क्या है ?(चलते चलते दूसरी क़िस्त )

जिनकी श्री कृष्ण आराधना करें ,जिनकी गोद में लेट कर श्री कृष्ण इतना सुख पायें ,अपने गोलोक को भूल जाएँ वह श्रीराधा हैं। 

कृष्ण की अनंत शक्तियों पर राज्य करने वाली एक लाजिमी शक्ति है। उससे भी ऊपर प्रेम की शक्ति है। प्रेम से भी ऊपर एक महा -अनुभाव शक्ति है। इसके भी दो विभाग हैं :

(१) रूढ़ 

(२) अधिरूढ़ 

अधिरूढ़ के भी आगे दो विभाग हैं :

(१) मादन 

(२) मोदन 

जो मोदन है वियोग में वही मोहन बन जाता है। 

मादन तक तो स्वयं कृष्ण भी नहीं पहुँच सकते। 

राधा का स्थान :

राधा कृष्ण की आराध्या हैं। कृष्ण कहते हैं :मैं राधा की आराधना करता हूँ। 

राधा आराध्य है या आराधिका ?कौन किसका आराध्य है ?सब शाश्त्र इसका समाधान करते हैं। वेद  कहता है भगवान् ने अपने को दो कर दिया है। दो हैं नहीं कृष्ण हैं एक ही लेकिन एक ही तत्व का एक भाग कृष्ण हैं दूसरा राधा। एक ही आत्मा है वह दोनों शरीर में है। 

राधिको -पनिषद क्या कहती है ?

एक ही आत्मा है वह दो बन गई है। प्रलय के बाद कृष्ण अकेले रह गए इसलिए उन्होंने अपने को ही दो बना दिया। अब अपने को कोई हज़ार बना दे किसी चीज़ के हजार टुकड़े कर देवे। फिर कृष्ण तो सर्वशक्तिमान हैं वह ऐसा कर सकते हैं। लीला करने के लिए कृष्ण ही राधा बन गए हैं। 

विस्तारित व्याख्या के लिए कृपया ये रोचक लिंक देखें :

http://www.youtube.com/watch?v=pgBqP--PezY

सार :जैसे एक मैं हूँ और एक मेरा शरीर है। ये जो मैं हूँ यह आत्मा है और जो शरीर है वह दासी है आत्मा की। ऐसे ही सभी आत्माओं की फिर एक आत्मा है वह श्री कृष्ण हैं और जो श्रीकृष्ण की आत्मा है वह राधा है।

http://www.youtube.com/watch?v=yWhMNNTWcuM

http://www.youtube.com/watch?v=jBHYgSFPMmc




3 टिप्‍पणियां:

  1. अस्पष्ट है---
    ----मादन तक तो स्वयं कृष्ण भी नहीं पहुँच सकते। ----जो स्वयं श्रीकृष्ण की शक्ति है उस तक वे क्यों नहीं पहुँच सकते ...
    ---जो मोदन है वियोग में वही मोहन बन जाता है। ......मोहन तो संयोग भाव है --मोहने वाला ...हाँ वह स्वयं निर्लिप्त है 'मोहन = मोह + न -- वह संसार के लिए भी मोहन है स्वयं भी मोहन .......यह द्वैताद्वैत भाव है ...

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  2. ब्रह्म में ढूंढो पुराननि ढूंढो वेद ऋचा सुनी चौगुनी चायन |
    शास्त्र सुने बहु ज्ञान गुने गीता सुनी औ सुनी रामायन |
    पायो- सुन्यो कतहू न कितै वो कैसो सरूप औ कैसो सुभायन |
    देख्यो दुरयो वह कुञ्ज कुटीर में बैठो पलोटतु राधिका पायन ||

    जवाब देंहटाएं
  3. "----मादन तक तो स्वयं कृष्ण भी नहीं पहुँच सकते।"जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के प्रवचन का अंश है यह। जिसका लिंक भी लेख के साथ दिया गया है। कृपया सुनें।

    http://www.youtube.com/watch?v=pgBqP--PezY

    सार :जैसे एक मैं हूँ और एक मेरा शरीर है। ये जो मैं हूँ यह आत्मा है और जो शरीर है वह दासी है आत्मा की। ऐसे ही सभी आत्माओं की फिर एक आत्मा है वह श्री कृष्ण हैं और जो श्रीकृष्ण की आत्मा है वह राधा है।

    http://www.youtube.com/watch?v=yWhMNNTWcuM

    http://www.youtube.com/watch?v=jBHYgSFPMmc

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