शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

आई... शरद की पुरनम रात

आई... शरद की पुरनम रात कन्हाई।
पूर्ण कला से चन्द्रदेव ने तृप्त किये तिहुं लोक,
जड, चेतन सब मंत्रमुग्ध हो करते विविध विनोद।
एक ओर चन्द्रदेव का जादू, दूजो मुरली की मनमोहक तान,
छेवी, देव सभी एकटक हो, देखें गोपिन का अलौकिक गान।
शिव भी भूल गये निजताई...
आई...शरद की पुरनम रात कन्हाई।
गोपिन वेश धरे शिवशंकर पहुंचे वंृदावन आलोक,
भूले कृष्ण वचन जटाधारी बन गये गोपिन रूप में एक।
सज, श्रृंगार किये त्रैलोकी, झूमे गोपिन संग त्रिनेत्र,
दरश किये प्रभु मुरलीधर की मिट गये सब के तृष्णा क्लेश।
धन्य हुई जगताई...
आई...शरद की पुरनम रात कन्हाई।।

5 टिप्‍पणियां:

  1. रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

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  2. शरदपूर्णिमा आ गयी, लेकर यह सन्देश।
    तन-मन, आँगन-गेह का, करो स्वच्छ परिवेश।

    सुन्दर चित्र।

    यही तो है कृष्ण का विलास उसकी लीलाओं का पर्सनल फॉर्म का विस्तार। सुन्दर प्रस्तुति।

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  3. वीरेन्द्र जी उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद

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