बुधवार, 9 अक्टूबर 2013

श्याम स्मृति-......मानव मन, धर्म व समाज ...डा श्याम गुप्त ....

                        श्याम  स्मृति-......मानव मन, धर्म समाज ...
                    जिस प्रकार मानव मन विभिन्न मानसिक ग्रंथियों का पुंज है, समाज भी व्यक्तियों का संगठन है|  मन बड़ा ही अस्थिर है, चलायमान है, वायवीय तत्व है | इस पर नियमन आवश्यक है |
                   कानून मनुष्य ने बनाए हैं, उनमें छिद्र अवश्यम्भावी  हैं, धर्म शाश्वत है, वही मन को स्थिरता दे सकता हैधर्महीन मानव, धर्महीन समाज, धर्महीन देश ...स्थिरता तो क्या एक क्षण खडा भी नहीं रह सकता .... अपने पैरों परआज विश्व की अस्थिरता का कारण है धर्महीन समाज |    धर्म का अर्थ सम्प्रदाय नहीं है | आज के चर्चित "रिलीज़न" वास्तव में सम्प्रदाय ही हैं | धर्म और रिलीज़न दो भिन्न संस्थाएं हैंआज चर्चित भिन्न-भिन्न  मत-मतान्तर, धार्मिक नियम ..धर्म नहीं हैं | धर्म तो एक ही है और वह शाश्वत है | धर्म का अर्थ है ...कर्तव्य का पालन,,,,,| और धर्म का केवल एक ही सिद्धांत है..."कभी दूसरों को दुःख मत दो |"......
परहित सरिस धर्म नहीं भाई
परपीड़ा सम नहीं अधमाई |

" सर्वें सुखिना सन्तु 
सर्वे सन्तु निरामया |
सर्वे पश्यन्तु भद्राणि,
मा कश्चिद दुखभाग्भवेत ||"


10 टिप्‍पणियां:

  1. धर्म का अर्थ है ...कर्तव्य का पालन,,,,,| और धर्म का केवल एक ही सिद्धांत है..."कभी दूसरों को दुःख मत दो |".
    हर कोई कर्तब्यों का पालन करेगा तो किसी को दुःख होने का प्रश्न ही नहीं उठता - उत्तम अभिव्यक्ति |
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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-10-2013) "दोस्ती" (चर्चा मंचःअंक-1394) में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-10-2013) "दोस्ती" (चर्चा मंचःअंक-1394) में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. जो शाश्वत भाव से रहा आया है आत्मा का जो मूल स्वभाव है वही सनातन धर्म है। बोले तो शान्ति ,आनंद ,प्रेम ,(दिव्य प्रेम).,डिवोशन। बढ़िया प्रस्तुति संक्षिप्त और सारवान।

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    1. सही कहा शर्माजी....आत्मा का जो मूल स्वभाव है वही सनातन धर्म है।...क्या बात है....

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  5. जो शाश्वत सत्य है वही तो धर्म है और धर्म क्या इस पर तो दुनियां में कहीं पर भी विवाद नहीं होना चाहिए लेकिन जब धर्म और सम्प्रदाय को एक ही मानने के कारण ही विवाद पैदा होता है ! जो नासमझी के कारण होता है !

    उत्तम प्रस्तुति !!

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  6. धन्यवाद पूरण जी....शास्त्रीजी....वीरेन्द्र जी...कालीपद जी ........आभार ....

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