मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

जज्बातों का चोगा

मैंने जज्बातों का
चोगा अब
उतार फेंका हैं...

अब न तो मुझे दोस्त
की दोस्ती छू पाती है
और न ही दुश्मन
की दुश्मनी...

बाग में खिले सुंदर
मोहक फूलों की
महक अब मुझे यूं
आकर्षित नहीं करती
जैसे पहले कभी करती थी...

अपनी सारी संवेदनाओ
को कुछ छुपा सा दिया है
मैंने खुद में ही
मुझमें अब न तो गुस्सा
बाकी है और
न ​ही प्यार की रसधार

बड़ी बेदर्दी से खुद में ही
कुचल दिया है मैंने अपने
जज़्बातों को
और उतार फेंका है जज़्बातों
का चोगा

3 टिप्‍पणियां:

  1. दिल कों समझाते रहना हैं "आल इज वेळ'.....
    अच्छे जज्बात रखने ही चाहिए |
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. अपनों से चोट खाए दिल यही करता -प्रभावी अभिव्यक्ति
    latest post: कुछ एह्सासें !

    जवाब देंहटाएं
  3. समय की चोट कभी कभी बागी कर देती है इन्सान को ... इससे पास पार ही जीवन है ...

    जवाब देंहटाएं