शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2013

चिरंतन काल से रहा है यह धर्म क्योंकि जो रास्ता ईश्वर की तरफ जाता है वह कभी नष्ट नहीं होता। न इसका कोई आदि है न अंत अनादि है यह आचरण जिसे धारण किया जाता है।

वेद ईश्वर प्रसूत हैं ईश्वर की वाणी हैं। 

भूतं भव्यं भविष्यं च सर्वं वेदात प्रसिध्यति (मनु स्मृति-१२. ९७  )


उसी  आध्यात्मिक सिद्धांत को मान्यता मिलती है जो वेदों के अनुरूप 

होता  है।

"Any spiritual principle is only acceptable if it is in conformity 

with the Vedas."


इतिहास :

वेद किन्हीं पुस्तकों का नाम नहीं हैं। ये तो स्वयं परमात्मा का दिया हुआ दिव्य ज्ञान है। शाश्वत भाव से सनातन रूप में परमात्मा की ही तरह वेदों का अस्तित्व रहा आया है। जब जब ईश्वर इस सृष्टि को रचता है तब तब इस ज्ञान का प्रादुर्भाव परमात्मा के द्वारा  ब्रह्मा के हृदय में  होता है।ब्रह्मा ही सृष्टि के पहले देव हैं। इनसे ये ज्ञान गुरु तक और फिर शिष्यों तक  पहुंचता  आया है।इसीलिए वेदों को श्रुति भी कहा गया है। एक कान से दूसरे  कान तक पहुँचता रहा यह आत्मा परमात्मा का ज्ञान। 

अब से कोई ५ ००० बरस पहले महर्षि भगवान् वेद व्यास ने इस ज्ञान को कलम बद्ध किया था जो स्वयं भगवान् के ही अवतार माने गए हैं इनका अवतरण ही वेदों -पुरानों उपनिषदों को रचने के लिए अनेक बार हुआ था। 

व्यास का मतलब होता है विभक्त करना और समास का मतलब होता है 

जोड़ना। क्योंकि इन्होनें वेदों को चार भागों में विभक्त किया इसीलिए 

इनका नाम व्यास पड़ा। 

ये चार भाग हैं :

(१)ऋग्वेद 

(२)यजुर्वेद 

(३ )अथर्व वेद और 

(४ )सामवेद 

ऋग्वेद को दुनिया की पहली किताब माना गया है। अपने ही किस्म का यह काव्य संसार है। वेद ईश्वर की ओर  ले जाने वाला ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बतलाते हैं। यही सनातन धर्म कहलाता है। चिरंतन काल से रहा है यह धर्म क्योंकि जो रास्ता ईश्वर की तरफ जाता है वह कभी नष्ट नहीं होता। न इसका कोई आदि है न अंत अनादि है यह आचरण जिसे धारण किया जाता है। 

संस्कृत रही है देव वाणी वेद की भाषा जिसे परिपूर्ण रूपेण अमरीकी अन्तरिक्ष संस्था नासा ने कम्यूटर सम्मत पाया है। इसके अति परिष्कृत व्याकरण को साधने में साधक को बारह बरस लग जाते हैं। भारतीय ही नहीं अंग्रेजी ,जर्मन ,फ्रेंच स्पानी आदि योरपीय भाषाओं का उद्गम भी इसे ही माना गया  है।लातिनी भाषा की  संस्कृत से तुलना करने पर पता चलता है इसका स्रोत भी देव भाषा संस्कृत ही है। 

"India was the motherland of our race ,and Sanskrit the mother of Europe's languages :She was the mother of our philosophy ;mother through the Arabs ,of much of our Mathematics ;mother through the Buddha ,of the ideals embodied in Christianity ;mother ,through the village community ,of self -governance and democracy .Mother India is in many ways the mother of us all ."Will Durant ,American Historian and Philosopher ,World -famous author of "The Story of Philosophy "(1885 -1981).

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