मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

भोगवादी चार्वाक दर्शन जिनका आदर्श है ,जो प्रकृति को भोग्या मान रहे हैं। वो तिहाड़ पहुंचेगें वहां नहीं :

निर्मल मन जन, सो मोहि   पावा ,

मोहि कपट छल ,छिद्र न भावा। (रामचरित मानस )

ऐसा कभी नहीं हो सकता ,हम सरे आम नियमों की अवहेलना करें 

,प्राकृतिक नियमों को ताक  पे रखके खुलकर स्वेराचार (मनमानी 

करें ),प्राकृतिक संसाधनों का निर्मम दोहन करें ,पोषण और शोषण रंच 

मात्र भी न करें और "वहां "पहुँच जाए  ,अपना कार्बन फुटप्रिंट 

बढ़ाते - बढ़ाते। 


वही ईश्वर को प्राप्त होगा एकांत में भी जो कभी भ्रष्ट नहीं होता ,जिसने अपना मनो राज्य जीत लिया है। जिसके मन में कोई 

व्यतिकरण छल कपट नहीं है जो वीत राग हो गया जिसकी आसक्ति 

समाप्त हो गई है। जिनके स्वप्न में भी राग द्वेष ठहरता नहीं है 

,बाई पास हो जाता है ,जो एकांत में भी अपने जीवन मूल्य और सम्यक 

ज्ञान ,अपनी नैतिकता से विरक्त नहीं होता है। अपना शील 

कायम रखता है। ऐसे निश्छल प्राणियों को ही प्रभु की प्राप्ति होती है। वे 

ही हमारा आदर्श हैं। उन्हीं का यशोगान होता है उन्हीने की 

गाथाएँ गाई  जातीं हैं। हर युग में ऐसे प्राणि वन्द्य हैं। क्योंकि जितींद्रिय 

(जितेन्द्रीय )होना उस मार्ग का पहला सौपान है जो ईशवर की 

तरफ जाता है। 


प्रकृति पर ऐसे लोगों का स्वत :ही शासन हो जाता है क्योंकि प्रकृति 

(Material Energy ), वे तो प्रकृति के पार निकल आये हैं. 

मायाजीत सो जगत जीत। 

जिनके मन में अहंकार है ,वासनाओं का रावण ठांठे मार  रहा है। जो 

माया रावण की गिरिफ्त में हैं। भोगवादी चार्वाक दर्शन जिनका आदर्श है 

,जो प्रकृति को   भोग्या मान रहे हैं। वो तिहाड़ पहुंचेगें वहां नहीं :


जन्नत तलब थे लोग धरम(हरम ) देखते रहे ,

दीवाने सरे राह से गुजर के निकल गए। 

वो वहां कभी नहीं पहुंचे रास्ते में ही अटक गए। 

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