गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013

द्वे वाव ब्रह्मणों रूपे मूर्तं चैव अमूर्तं च। अर्थात परमात्मा निराकार (निराकारी )है ,सर्वव्यापक है ,एक साथ सब जगह उसकी व्याप्ति है लेकिन वह वैयक्तिक रूपाकार (Personal Form )में भी प्रकट हो सकता है।

 ईश्वर अल्लाह तेरो नाम 

एक ही परमात्मा के अनेक नाम हैं। हिन्दू भगवान् को पूजते हैं ईसाई मसीह (ईशु )को मुसलमान अल्लाह -ताला की इबादत करते हैं यहूदी जेहोवा ,पारसी अहुरा माजदा (Ahura Mazda)की। जैन सम्प्रदाय के लोग अलख निरंजन की अर्चना पूजा करते हैं सिख एक एउ ओंकार सत  नाम (१ ॐ )कहते हैं अर्थात ईश्वर एक ही है। (राम का नाम ही सत्य है ). बुद्ध सम्प्रदाय के लोग शून्य को ईश्वर कहते हैं। क्या ये ईश्वर सबके अलग अलग हैं ?



वैदिक ग्रन्थ इसका खुलासा करते हैं -


एकं सत विप्र :  बहुधा  वदंति (ऋग्वेद १. १६४. ४६ )


अर्थात परम सत्य एक ही है लेकिन भक्तजन इसे अलग अलग नाम से पुकारते हैं। सभी धर्म सम्प्रदाय एक ही सर्वशक्तिमान की उपासना कर रहे हैं। अज्ञान से परस्पर  भेद और कलह पैदा हो रहा है। 

यह ठीक अंधों का हाथी वाला प्रसंग जैसा है जहां एक अंधा हाथी का पेट हाथ  से टटोल के कहता है हाथी दीवार की तरह होता है दूसरा पूछ को टटोल कहता है नहीं नहीं हाथी रस्सी जैसा होता है और तीसरा पैर का स्पर्श कर कहता है वृक्ष के तने सा होता है ,और चौथा उसके कानों को छू बूझ के कहता है नहीं पंखे जैसा होता है (हाथ से झलने का पंखा ). 

अब सभी बात तो हाथी की ही कर रहे हैं लेकिन पूरे हाथी की नहीं उसके चुनिन्दा अंगों की बात कर रहे हैं। हाथी तो इन सबको मिलाकर बनता है। 

वेद कहते हैं भाई सभी एक ही तत्व की उपासना कर रहे हैं। 

क्या ईश्वर का कोई आकार भी होता है आकार ग्रहण कर सकता है ईश्वर ?आकार स्वरूप (सगुण )क्या कृष्ण ,राम ,शंकर (शिव )आदि को भी भगवान् ही माना जाए। जबकि ईश्वर को तो निराकारी निर्गुण कहा गया है। 

मान लीजिये वह ऐसा नहीं कर सकता फिर ऐसा कहने से उसकी एक शक्ति कम हो जायेगी हम उसे सर्वशक्तिमान सर्वज्ञाता नहीं कह सकते सृष्टि का रचता (रचैया )भी नहीं कह सकते। और अगर उसे सर्व शक्तिशाली मानते हैं जिसने अपनी भौतिक ऊर्जा (माया )से तमाम रूप आकार गढ़े हैं फिर वह अपने लिए एक रूपाकार क्यों नहीं गढ़ सकता ?

वह यदि सर्वशक्तिमान  है तब उसमें एक साथ अनेक रूपों में प्राकट्य की भी सामर्थ्य है ताकत है। लेकिन इसके साथ साथ वह निराकार भी है। तभी तो वह एक साथ सब जगह मौजूद है। उसकी माया उससे अलग नहीं है शक्ति शक्तिमान से अ -लग नहीं होती है उसी की होती है अब शक्ति दिखलाई तो नहीं देती न लेकिन होती तो है उसी से तो हम सब काम करते हैं। काम करने की क्षमता  को ही तो शक्ति कहा जाता है। 

परमात्मा की असीम शक्ति का एक अंश ही तो हमारे अन्दर है जिसे हम आत्मा कहते हैं।वह आत्मा भी तो दिव्य ऊर्जा है उसी की ,और निराकार स्वयं हमारी आत्मा भी तो है ।  जब हम अनेक बार अ -नेक शरीर ले चुके हैं लेते रहते हैं जन्म जन्म फिर परमात्मा क्यों नहीं ले सकता अनेक शरीर एक साथ जबकि वह तो सर्वशक्तिशाली है अन्तर्यामी है। 

परमात्मा सम्पूर्ण दोष रहित है इसलिए वह एक साथ निराकार भी हो सकता (निर्गुण )और साकार (सगुण )भी। इसलिए वेद परमात्मा के आकारी -निराकारी (सगुण -निर्गुण )दोनों स्वरूपों को स्वीकृति  प्रदान करते  हैं।

द्वे वाव ब्रह्मणों रूपे मूर्तं चैव अमूर्तं च। 

अर्थात परमात्मा निराकार (निराकारी )है ,सर्वव्यापक है ,एक साथ सब 

जगह उसकी व्याप्ति है लेकिन वह वैयक्तिक रूपाकार 

(Personal Form )में भी प्रकट हो सकता है। 


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