बुधवार, 6 नवंबर 2013

भारत अंतरिक्ष में अब नई ऊंचाईयों को छुएगा

 अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में भारत ने आज इतिहास रच दिया है हिंदुस्तान का मंगलयान लाल ग्रह के लिए उड़ान भर चुका है। मंगलयान पीएसएलवी रॉकेट ने आज दोपहर ठीक 2 बजकर 38 मिनट पर 

श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी। ये रॉकेट नैनो कार के बराबर के इस मंगलयान को अंतरिक्ष में छोड़ देगा, जहां कुछ दिन पृथ्वी के चक्कर काटने के बाद ये नौ महीने की मुश्किल यात्रा पर मंगल की ओर बढ़ जाएगा।

इसी के साथ भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। मंगल मिशन के साथ ही भारत दूसरे ग्रह के लिए अभियान चलाने वाला एशिया का पहला और दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। वैज्ञानिकों के पास इस अभियान की तैयारी के लिए सिर्फ 15 महीने का वक्त था क्योंकि अगला मौका 780 दिन के बाद जनवरी 2016 में ही मिल सकता था।

भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन भी मंगल के लिए यान भेज चुके हैं। मंगल मिशन भारत का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन है यानी पहली बार किसी दूसरे ग्रह पर प्रयोग की शुरुआत कर रहा है भारत। इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन के 

मुताबिक मंगल को रहने योग्य माना जाता है। कई प्रकार से यह धरती जैसा ही है। उन्होंने बताया कि धरती के लगभग समान मंगल भी अपनी धुरी पर 24 घंटे 37 मिनट में एक घुर्णन(स्पिन ,नर्तन ,घूर्णन ) लगाती है। हालांकि धरती जहां 365 दिन में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करती है, वहीं मंगल को इसमें 687 दिन लगते हैं।

गौरतलब है कि इसरो के इस अभियान पर 450 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। ऑर्बिटर को मंगल की कक्षा में पहुंचने में नौ महीने लगेंगे। अब तक चलाए गए 51 मंगल अभियानों में 21 ही सफल रहे हैं। अंतरिक्ष कार्यक्रम 1960 से ही इसरो के अभियानों का हिस्सा रहा है। ज्ञात हो कि चंद्रयान-1 अभियान में ही पहली बार चांद पर पानी का पता चला था। अभी ऑर्बिटर धरती की कक्षा में ही चक्कर लगाएगा। एक दिसंबर को इसे अंतरिक्ष में मंगल की ओर बढ़ाया जाएगा।

श्रीहरिकोटा  में उल्लास :

भारत के पहले मंगलयान को लेकर एक भारतीय प्रक्षेपण 

यान ने मंगलवार को आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र स्थित 

प्रक्षेपण मंच से मंगल ग्रह के 


लिए प्रस्थान किया। मंगलयान को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर दिया 

गया है। मंगलयान की इस मंगलमय यात्रा के साथ भारत अब चीन से 

भी आगे निकल गया है। जी 


हां मंगल मिशन को लेकर भारत पहला एशियाई देश बन गया है।

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-सी25 (पीएसएलवी-सी25) ने ठीक अपराह्न् 

2.38 बजे प्रस्थान किया। प्रक्षेपण यान लगभग 44 मीटर ऊंचा और 

लगभग 320 टन वजनी है। 

प्रक्षेपण यान ने नारंगी रंग का धुआं छोड़ते हुए अपने गंतव्य की ओर 

प्रस्थान किया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक 

अधिकारी ने कहा कि हीट शील्ड (ताप कवच )

नियत समय पर प्रक्षेपण यान से अलग हो गया और अभियान सही 

रास्ते पर है। इसरो के अधिकारियों को उम्मीद है कि यह महत्वपूर्ण 

मिशन एक बड़ी सफलता होगी

जानें भारत के ऐतिहासिक 'मंगल मिशन' से जुड़ी रोचक बातें-

इस मौके पर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी ने कहा 

है कि मैं इस 'मंगल मिशन' से जुड़े हुए प्रत्‍येक शख्‍स को बधाई देता हूं 

और उम्‍मीद करता हूं कि 

भारत अंतरिक्ष में अब नई ऊंचाईयों को छुएगा। पिछली बार जब इसरो ने 

चंद्रयान लांच किया था तो मैं वहां गया था। इस बार मैं वहां नहीं जा 

सका। मैं इसरो की पूरी टीम 

को बधाई देता हूं।


नई दिल्ली  भी उल्लसित :

 स्पेस टेक्नॉलजी में मंगलवार को भारत ने बड़ी सफलता हासिल की है। भारत ने सफलतापूर्वक मंगलयान को इसरो के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) सी-25 की मदद से मंगलवार दोपहर 2.38 बजे छोड़ा। तीन बज कर 20 मिनट के निर्धारित समय पर यह पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया। इसके साथ ही पीएसएलवी सी- 25 लॉन्च का चौथा चरण भी सफलतापूर्वक पूरा हो गया।

गौरतलब है कि मंगलयान को पिछले महीने 19 अक्टूबर को छोड़े  जाने की योजना थी, लेकिन दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण यह काम टाल दिया गया था। ध्यान रहे कि इस अभियान को मार्स ऑर्बिटर मिशन नाम दिया गया है।

भारत के इस मिशन के लिए सरकार ने इसरो को 3 अगस्त 2012 को मंजूरी दी थी। वैसे, इसके लिए 2011-12 के बजट में ही फंड का प्रावधान कर दिया गया था। भारत की जनता के साथ ही देश के स्पेस साइंटिस्ट्स इस अभियान को लेकर खासे उत्साहित हैं।

अभी तक अमेरिका, रूस और यूरोप के कुछ देश (संयुक्त रूप से) ही मंगल की कक्षा में अपने यान भेज पाए हैं। चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान नाकाम साबित हुए हैं। अब भारत भी उन देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने मंगल ग्रह के लिए अपने यान भेजे हैं।

बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने मिशन मंगल ऑर्बिटर में लगे हुए सभी वैज्ञानिकों(विज्ञानियों ) को बधाई दी। उन्होंने कहा वैज्ञानिकों के इस प्रयास से आज दुनिया में देश का मान बढ़ा है।

इस तरह पूरा करेगा सफर:-

1. खुद की मरम्मत की क्षमता से लैस होगा, कम से कम मानवीय हस्तक्षेप होगा।

2. पुर्जों को काफी छोटा रखा गया है, टाइम गैप हटाने को नया कम्यूनिकेशन सिस्टम।


3. सूर्य से ऊर्जा हासिल करेगा, हालांकि मंगल पर इसकी उपलब्धता काफी कम है।


4. सेंसर के जरिये पूरे ग्रह पर मीथेन की तलाश होगी, जिससे जीवन के संकेत मिलेंगे।

अंग्रेजी में भी पढ़ें :




India's first-ever mission to Mars launched into space today 


(Nov. 5), beginning the country's first interplanetary mission 

to explore the solar system. 


With a thunderous roar, India's Mars Orbiter Mission rocketed into space at 4:08 a.m. EST \

(eastern standard time )

(0908 GMT,Greenwich mean time ) from the Indian Space Research Organisation's Satish 

Dhawan Space Centre in 

Sriharikota, where the local time will be 2:38 p.m. in the afternoon. An ISRO Polar Satellite 

Launch Vehicle launched the probe on its 300-day trek into orbit around the Red Planet.

"The journey has only just begun," said ISRO Chairman K. Radhakrishnan after the successful 

launch. [India's First Mars Mission (Photos)]

Less than an hour after liftoff,  Radhakrishnan reported that India's Mars probe successfully 

entered a staging orbit around Earth. Mars Orbiter Mission director Kunhi Krishnan describing 

the launch as a start to a "grand and glorious" mission. 

If all goes well, India's first Mars orbiter — called Mangalyaan (Hindi for "Mars Craft") — will 


arrive at the Red Planet on Sept. 24, 2014, making India the fourth country to successfully 

deliver a spacecraft to Mars. The $73.5 million Mangalyaan 

Through the course of several orbits, the spacecraft will perform a series of maneuvers to 

place it on a path to Mars.

Hong Kong (CNN) -- A successful mission by India's Mars orbiter would make the country the first 

Asian nation to reach the Red Planet -- and provide a symbolic coup as neighboring China steps up its 

ambitions in space.

Tuesday's launch was successful, but the plan to send the Mangalyaan, or "Mars craft," on a 680 million-kilometer journey into Mars' orbit has given further credence to claims of an intensifying -- although officially unacknowledged -- space race developing in Asia, with potentially dangerous ramifications.

I believe India's leadership sees China's recent accomplishments in space science as a threat to its status in Asia, and feels the need to respond," says Dr James Clay Moltz, professor at the U.S. Naval Postgraduate School, who sees increasing competition for space-related power and prestige in Asia that echoes the Cold War space race of the mid-20th century.

While Koppillil Radhakrishnan, the head of India's Space Research Organization, has stressed his country is not engaged in competition with any other nation, the mission -- to put a probe into an elliptical orbit around the red planet, mapping its surface and studying the atmosphere -- has been freighted with patriotic significance since its inception.

Prime Minister Manmohan Singh announced the 4.5 billion rupee (US$74 million) mission on India's Independence Day last year, just months after a failed joint mission to Mars by Russia and China -- India's great regional rival for superpower status and the most rapidly accelerating space power. To date, only the U.S., Europe and the Soviets have successfully sent spacecraft to Mars -- Japan's 1998 Nozomi orbiter was also unsuccessful.

THE OTHER SIDE OF THE COIN 

But not everyone will be cheering from the sidelines. Economist Dr Jean Dreze of the Delhi School of Economics questions the wisdom of investing resources in a flag-waving trip to Mars when the country faces such pressing development needs at home.

"Much as I admire India's Mars mission as a scientific achievement, I am unable to understand the urgency of getting there," he told CNN. "The country would be better served if the same resources, talent and zeal were focused on public health or solar energy. This is a prime case of trying to climb the ladder from the top."

Even a former head of ISRO, Dr. G Madhavan Nair, has criticized the project as a waste of resources, saying the proposal was half-baked, too expensive and poorly conceived.

He told CNN's sister network CNN-IBN that while he was in favor of exploring Mars, "my contention is that it has to be done properly with complete set of instruments and with proper orbit." The elliptical orbit, which he said would bring the craft within 360km of Mars at its closest point and 80,000km at its furthest, was "the wrong kind of orbit to enable any clear observation of a planet."

"It is not value for money, that's what I feel," he told CNN-IBN. "With regard to priorities, we know there is severe shortage of communication transponders in the country. We need to prioritize that."

So why is India aiming for Mars? For much of its 50-year history, India's space program has prioritized developing technological capacity to help its population, such as improving its telecommunications infrastructure and environmental monitoring with satellites.

Just last month, points out Dr Krishan Lal, Fellow at the Indian National Science Academy, India's satellite network -- one of the largest communications systems in the world -- successfully gave advance warning of a cyclone heading for the eastern seaboard,allowing for the evacuation of about 900,000 people.

But since 2008, when India sent an unmanned probe to the Moon, the focus has shifted away from a utilitarian focus towards exploration.

Radhakrishnan, ISRO chairman, told CNN the mission had several aims, including monitoring the planet for traces of life that may have existed on Mars, but predominantly to demonstrate the technological capability for interplanetary travel. "First and foremost, what we are trying to do is reach there," he said.


Lal said the mission was "primarily about technology proving ," and was also a matter of significant national prestige .:It can't be said that it is a scientific issue ,"he said .


Indeed, any scientific gains from the mission were unlikely to prove "earth-shattering," said Professor Russell Boyce of the Australian Academy of Science, chairman of the National Committee for Space and Radio Science. "It would be a modest scientific gain that's attempted in the first instance, to demonstrate the capability."

Rather, the mission was driven mainly by the desire "to demonstrate they can" -- a projection of India's technological expertise intended to boost its international prestige and credentials as a leading world power.

"It is a way of showing that you should be taken seriously: 'We are growing in status as a major spacefaring nation, which tends to go alongside growing in status as a great nation.'"

And India is particularly motivated to do so at present, argues Moltz, due to regional rival China's rapid ascent as a space power. Since China launched its first manned spacecraft into orbit a decade ago, he believes, Asia has become the epicenter of a new space race, with China, Japan, and then India leading the way, and smaller powers such as South Korea, Malaysia, Indonesia, Thailand, Vietnam and Taiwan beginning to follow suit with ambitions of their own.

This increasing competitiveness, Moltz argues, is fueling regional tensions, and carries with it the risk for potential confrontations and a deepening militarization of space, unless it is accompanied by greater cooperation.

Conceived in the current regional environment, he said, India's Mars mission was "clearly linked to politics and prestige as much as science."


In terms of national security, he said, "India faces a serious challenge from China's rising space capabilities." "It cannot compete with China's vast resources head to head, as it would likely lose any space 'arms race' with Beijing," he said, adding that meant India would have to be "creative in crafting its response to Chinese developments" including potentially forming alliances with other spacefaring powers.

But other observers differ in their assessments. Boyce said that while there had been a rapid acceleration of space activities in the region, "I'd hesitate to call it a space race."

Rather than being fueled by competition, he said, the heightened activity was largely due to an increasing appreciation of the importance to states of space assets and satellite technology. They provided vital functions in areas such as communications, or remote sensing for climate change monitoring, disaster management or resources prospecting.

"There's a growing realization if you're engaged in space, if you have access to space assets and space-based information, then you stand to gain economically, and in terms of prestige as a nation," he said.

The extent to which countries were motivated by pragmatic interest or prestige varied from nation to nation. "For a country like Australia, the space aspirations are extremely pragmatically driven. On the other hand, a country like Malaysia is intent on putting astronauts in space -- that's very prestige-oriented."

Lal also disputed that a space race was occurring, saying his country acknowledged its limitations in being able to compete with superior space powers and was content to play to its technological strengths, including through comparatively low-cost missions like Mangalyaan. "A space race? This is not the right way to look at it. If you look at the technological base of Japan, we are not comparable. In many ways, China has done better than India, we have no issues with that," he said. "We are trying to collaborate, in my opinion."


India's first mission to Mars, the Mars Orbiter Mission, launches the Mangalyaan orbiter toward the Red Planet atop a Polar Satellite Launch Vehicle on Nov. 5, 2013 from the Indian Space Research Organisation's Satish Dhawan Space Centre in Sriharikota.
India's first mission to Mars, the Mars Orbiter Mission, launches the Mangalyaan

orbiter toward the Red Planet atop a Polar Satellite Launch Vehicle on Nov. 5, 2013 from the

Indian Space Research Organisation's Satish Dhawan Space Centre in Sriharikota.

Infographic: How India's Mars Orbiter works.
After a 
300-day 
cruise 
through 
space, 
India's Mars 
probe will 
circle the 
planet.

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