शनिवार, 16 नवंबर 2013

छः दोहे .....डा श्याम गुप्त ..



आदि अभाव अकाम अज, अगुन अगोचर आप,
अमित अखंड अनाम भजि,श्याम मिटें त्रय-ताप | १   

त्रिभुवन गुरु औ जगत गुरु, जो प्रत्यक्ष सुनाम,
जन्म मरण से मुक्ति दे, ईश्वर करूं  प्रणाम | २

हे माँ! ज्ञान प्रदायिनी,ते छवि निज उर धार,
सुमिरन कर दोहे रचूं, महिमा अपरम्पार | 

श्याम सदा मन में बसें, राधाश्री घनश्याम,
राधे  राधे नित जपें, ऐसे श्रीघनश्याम | ४

अंतर ज्योति जलै प्रखर, होय ज्ञान आभास,
गुरु जब अंतर बसि करें,गोविंद नाम प्रकाश | ५

शत शत वर्षों में नहीं, संभव निष्कृति मान,
करते जो संतान हित, मातु-पिता वलिदान |६

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (17-11-2013) को "लख बधाईयाँ" (चर्चा मंचःअंक-1432) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    गुरू नानक जयन्ती, कार्तिक पूर्णिमा (गंगास्नान) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. त्रिभुवन गुरु औ जगत गुरु, जो प्रत्यक्ष सुनाम,
    जन्म मरण से मुक्ति दे, ईश्वर करूं प्रणाम | २

    हे माँ! ज्ञान प्रदायिनी,ते छवि निज उर धार,
    सुमिरन कर दोहे रचूं, महिमा अपरम्पार | ३

    श्याम सदा मन में बसें, राधाश्री घनश्याम,
    राधे राधे नित जपें, ऐसे श्रीघनश्याम | ४

    अंतर ज्योति जलै प्रखर, होय ज्ञान आभास,
    गुरु जब अंतर बसि करें,गोविंद नाम प्रकाश | ५

    शत शत वर्षों में नहीं, संभव निष्कृति मान,
    करते जो संतान हित, मातु-पिता वलिदान |६

    भाव और अर्थ सौंदर्य से संसिक्त दोहावली।

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