रविवार, 29 दिसंबर 2013

काँपते लबों से विदाई --पथिक अनजाना





                                        काँपते लबों से विदाई   --435
चाहते हैँ सनम जब हम जहान से जुदा होंगें
जोड कर हाथ करें हम खुदा से इक दरखास
होगें हाथ तुम्हारे वक्ते मौत हाथ हमारों में
काँपते लबों से विदाई हो लेकर मिलन की आस
बंधनों,गैरख्यालों ने कियाआशाऔं का सत्यानाश
मुस्कायें उनके चेहरे कहलाये हैं हम शाबाश
खरीदे गम व आहें होते फिर क्यों हम निराश
पथिक अनजाना
http://pathic64.blogspot.com

1 टिप्पणी: