मंगलवार, 14 जनवरी 2014

तोल कर बोलना है जरूरी

राजनीतिज्ञों को संवेदनशील मसलों पर कोई भी बयान देने से पहले उसके ध्वन्यार्थो के प्रति अतिरिक्त सचेत होना चाहिए. आंदोलन में रैडिकल विचारों का स्वागत किया जाता है, जबकि राजनीति को मध्यमार्गी होना पड़ता है.आंदोलन में अक्सर सत्य सिर्फ एक होता है, जबकि राजनीति और शासन में सत्य के अनेक रूप होते हैं. कहते भी हैं, मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना यानी अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय होती है. राजनीति का काम इन अलग-अलग रायों, अलग-अलग सत्यों के बीच से एक बीच का रास्ता निकालना होता है. यहां रैडिकल विचारों के लिए ज्यादा जगह नहीं होती है. लेकिन, ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी के नेता प्रशांत भूषण, जो सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील भी हैं, राजनीति के इस मूलभूत सिद्धांत से अनभिज्ञ हैं. पहले उन्होंने कश्मीर में सेना की तैनाती के मसले पर जनमत सर्वेक्षण कराने संबंधी अपने बयान से बड़ा विवाद खड़ा कर दिया और अब वे देश के नक्सल प्रभावित इलाकों में अर्धसैनिक बलों की तैनाती के सवाल पर वहां की जनता से रायशुमारी कराना चाहते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि जनता की इच्छा का सम्मान करना, निर्णयों में जनता को भागीदार बनाना, लोकतंत्र की जीवंतता का आधार होता है. मगर, यहीं यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि हमारे संविधान के भीतर आपात उपबंधों का भी प्रावधान किया गया है, जो अपवाद परिस्थितियों में ‘राज्य’ को हस्तक्षेप करने की इजाजत देते हैं. कश्मीर या नक्सल प्रभावित इलाके में क्रमश: सेना और अर्धसैनिक बलों की तैनाती को अपवाद स्थितियों में किये गये राज्य के ऐसे ही हस्तक्षेप के रूप में देखा जा सकता है. यह सही है कि यह हस्तक्षेप सतत और सदैव जारी नहीं रह सकता. न यह अपने आप में समस्या का समाधान ही है. इसके लिए इन इलाकों में आतंकी और नक्सली गतिविधियों पर नियंत्रण और स्थानीय निवासियों में सरकार के प्रति विश्वास बहाल करने, उन्हें मुख्यधारा में शामिल किये जाने की जरूरत है. यह एक दिन का काम नहीं है. निश्चित तौर पर यहां इस तथ्य पर भी विचार करना होगा कि सशस्त्र बलों की उपस्थिति इस लक्ष्य को पाने में सरकार की मदद कर भी रही है या नहीं! यह एक जटिल मसला है और इसका कोई रैडिकल हल नहीं हो सकता.

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (15-01-2014) को हरिश्चंद का पूत, किन्तु अनुभव का टोटा; चर्चा मंच 1493 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    मकर संक्रान्ति (उत्तरायणी) की शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

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