रविवार, 12 जनवरी 2014

चातुर्य हर जगह --पथिक अनजाना --४५१ वां पोस्ट




    चातुर्य हर जगह
 नही सदैव तेरा चातुर्य हर जगह काम आवे
नही थोडा या अक्षयज्ञान तुझे आ राह बतावे
न संगत हर मुसीबत में हो साथ हाथ बटावे
न कोई तो यहाँ सुने न कोई तुझे कुछ बतावे
गर सुकर्मों के खाते में नही कुछ बचा शेष हैं
न भाग्य रहनुमां हमसफर न साथ दरवेश हैं

पथिक अनजाना

3 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा, सुकर्म ही सच्चा साथी है।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (13-01-2014) को "लोहिड़ी की शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1491) पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हर्षोल्लास के पर्व लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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