रविवार, 2 फ़रवरी 2014

पथिक अनजाना कहलावेंगें ----पथिकअनजाना ---473 वीं पोस्ट





बहुतेरे बहते मिल जावेंगे, बहुतेरे चीखते चिल्लाते
बहुतेरे गोते लगाते मिल जावेंगें बहुतेरे तैरते जाते
बहुतेरे थामे दामन किसी महान का कोईरटे अनजान
बहुतेरे समझौता वक्त से करते कुछ राह देखते हैं
कुछ पछताते तो हंसतेगाते कुछ माया में खुद गवाँते
देख देख मुस्काता वाह रे क्या शै बनाई इंसा विधाता
कुछ ऐसी हालातों से गुजर अनेकों दाग हमने लिये हैं
कविता ने जगाया हमें माया,काया,रियाया से तोड-नाता
संसारिक सरिता की लहरों पर वैराग्य की नाव पर बैठ
सुकर्मों की पतवार चला प्राकृतिक कविता सुनपार होवेंगें
दे अवसर खजाना सुकर्म बढता रहे तभी किनारा पावेंगें
हम हंसते हुये यारों बीच तुम्हारे जिन्दगी बीता जावेंगें
याद करोगे किसी वक्त लफ्ज लबों पर थिरक जावेंगें
सफर साथ तुम्हारे फिर भी पथिक अनजाना कहलावेंगें

पथिक अनजाना

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