रविवार, 9 फ़रवरी 2014

बेचैनी यहाँ जवांई जैसी—पथिक अनजाना---480 वीं पोस्ट

गर आदी फिर क्यों बेचैनी यहाँ समाई रहती हैं ?
बेचैनी भी ऐसी कि जिसकी वजह हैं हल नही हैं
राजाओं- वंशज उत्तरोतर राज्य किया करते थे
दासतां मुगलों दौरान कुछ ऐसा घटित होता था
दासतां ब्रिटिश दौरान कुछ ऐसा घटित होता रहा
दासतां ? गर नही तो क्यों ऐसा घटित हो रहा हैं?
लुभावने नारे,लदे करबोझ दिखाते दिन में सितारे
समाज,समुदाय,इष्टों,महंगाई के फतवे बने नजारे
आजादी? आदमी का “म” खो वो आदी हो गया हैं
बेचैनी व आदी के अनूठे संयोग मेंआजादी खो गया
प्रगति आदि मानव से चल मानव आदी हो गया हैं
नया नही हर दासतां दौरान बेचैनी आ ही जाती हें
जगहंसाई आजादी में बेचैनी यहाँ जवांई जैसी हैं
क्यों नही बेचैनी रहती? पथिक तुम से क्या कहती ---
पथिक अनजाना


1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (10-02-2014) को "चलो एक काम से तो पीछा छूटा... " (चर्चा मंच-1519) पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    बसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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