गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

बिना शगुन के कई रतजगे..


प्रेम परीक्षा देकर कोई  

कोरा कागज़ जांच गया है,

आँखों ही आँखों में जैसे 

एक भागवत बांच गया है !!

सप्त-युगों से विरही ये दिन  

बिना शगुन के कई रतजगे..

बिना भागफल लिखी कुंडली 

शब्द बहुत थे कहे अनकहे ...!!

हार जीत के बिना अनिर्णित 

ख़त्म हो गया खेल सांस का,

सदा अधूरी रही कहानी 

कहीं शेष कुछ रहा फांस सा ..!!

कठिन पंथ पर वह निर्मोही 

पग पग रखकर आंच गया है .....!

                      @-भावना 

2 टिप्‍पणियां: