सोमवार, 3 मार्च 2014

नियम व नियंत्रण—पथिक अनजाना –504 वीं पोस्ट



पूर्व में मैंने नियम नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया था
परन्तु अनुभवों मंथन से जाना कि मैं गलत राह पर जा रहा था
नियम नियंत्रण मानवीय जीवन में मूल्यहीन अस्तित्व खो गये हैं
मौजूद साधनाधार पर नियम नियंत्रण कब के लोचनीय हो गये हैं
वैसे बहुत कम देखने मे आया कि इंसा रहा कभी बंधा नियमों से हैं
उसे तब कालानुसार परिस्थितियों अनुसार खुद को बदलना होता हैं
जो हवा दरिया का पानी इस क्षण जहाँ है अगले क्षण वहाँ होगा
कठोर नियम  नियंत्रण असफल अब अगले हालातों देख निर्णय होगा

पथिक  अनजाना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें