मीत गीत रीत प्रीत नीत जीत की नही यहाँ प्यास मुझे
बस गुजर गई सारी उम्र इंतजार में प्यासा ही रह गया
धन पद हद मद न मिले कहीं न कभी हाल मेरा पूछे
आया जिस रंग में वही रह गया दूजा रंग न चढ पाया
शायद मकसद पूरा करने हेतू
नरक फिर आना होगा
प्रयास मकसद खोजने का मै ताउम्र करता ही रह गया
वजह नही राह पनाह व सलाह नही बताई गई हैं मुझे
किससे मांगे मदद पुकारने की दिशा अधियारा अनजान
हरेक देता हिदायतें कारवां चलता रहा मैं दूर हो गया
पथिक अनजाना
http://pathic64.blogspot.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें