बुधवार, 12 मार्च 2014

कोई चाह नही है---पथिक अनजाना –513 वीं पोस्ट




कोई चाह नही है---पथिक अनजाना –513 वीं पोस्ट
 दुनिया ने उसके खौफ की अनगिनत
दुनिया ने  लोभार्थ उसके स्वर्ग नामी
राज्य की शोहरतों की पींगें चढा  दी
दुनिया ने कभी एहसास हमें उसके
गुलाम होने का भी करा दिया गया
हर तरह से दुनिया ने हर इंसा के
दिलोदिमाग पर उसे लहरां ही दिया
किसी ने तप जप किसी ने उपवास
किसी ने वन में जीवन गवां दिया
कोई भटका तीर्थों में जाकर कोई पोथी
पुराण में कल्पना के रूप खोजता रहा
इंसा को एक लक्ष्य खिलौना रब जैसे
 नाम का थमाकर युगों से भटका दिया
मैं समझा क्यों दौडूं क्यों क्या उस
राह जाँऊ क्या शै जो उसको मैं ध्याऊ
हर लक्ष्य के पीछे कोई चाहत मकसद
होता हैं पर मेरी ऐसी कोई चाह नही है
बेवजह क्यों मैं गुरू खोजू आकार या
निराकार राह सोच सोच जीवन गवांऊ
प्रस्तुत तथ्य दुनिया के नही समझा
फिर क्यों व्यर्थ अपने को भटका दू
विचारों में अनदेखे के आकारों को सोच
भटकनों से खाली करे हृदय शांत करें
पथिक अनजाना

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