शुक्रवार, 14 मार्च 2014

लिखित या व्यक्त उदगारों से राह—पथिकअनजाना-515 वीं पोस्ट



        बुद्धिमान की पहचान शांत खोज निगाहें व मुस्कान
         वे लिखित या व्यक्त उदगारों से राह बना ही लेते हैं
         सोच व विचार अन्य के चिन्तक तो यह कहलाजाते
         नहीं सजाते दीवालों या आलों में न पूजते राहों को हैं
         मंथन कर अमृत कलश को छीन हासिल कर ले जाते
         दे गर ध्यान तू विचारों पर सुकर्म पुष्प खिल जाते हैं
         ये वे पुष्प जो कि न केवल दिन-रात रहते सुगन्धित
         सुराह पथगामियों को करते आकर्षित अमर सुगन्ध
         रहती कायम पहचान बुद्धिमान की महान पा जाते हैं
   

           पथिक अनजाना

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