बुधवार, 19 मार्च 2014

हाय की मौजूदगी आज भी-पथिकअनजाना-520 वीं पोस्ट



हाय पहले भी किया करत थे हसीनाओ को देख कर
हाय आज भी करते हैं हमें अपने वजूद को देख कर
हाय पहले किया करते थे जवानी में यारों को देखकर
हाय की मौजूदगी आज भी तनहा दीवारों को देख कर
करीब फैली इंसानी जमात को देती हाय सदा मात रही
काश राह हाय की रूके जिन्दगी इंसा की आसान होवे
मानो हर मंजिल के राही दौडते सहारा हाय में हैं खोये
नही बता सका मुझे  कोई अमर हाय कहाँ से आ रही
यह हाय ही हें जो ताउम्र सदैव इंसान के साथ ही रही
यह हाय ही है जिसने आज तक हमे बाय बाय कही

पथिक अनजाना

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