रविवार, 30 मार्च 2014

व टूटे हुये मंजरों को-०पथिकअनजाना---530 वीं पोस्ट





टूटे हुये मंजरों को-०पथिकअनजाना---530 वीं पोस्ट

वास्ता हैं इनका आधारहीन बकवासी रंगीन सपनों का
इंसा का दिल इसी बेवफाई टूटे हुये मंजरों को ले रोता हैं
हर युग में यहाँ पढें गर इतिहास तो युद्ध अपनों से होता हैं
परंपराऔ की बदबूदार लाश हर युग में यहाँ इंसा ढोता हैं
चाहत गर सुगन्धित समाज की तुम्हे अपना शब्द हटा दो
बांटों सीमा भाषा पहनावे में सकून की जिन्दगी बना दो

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