शनिवार, 1 मार्च 2014

नवगीत

नवगीत
1.   
मंदिर मस्जिद द्वार
बैठे कितने लोग
लिये कटोरा हाथ

शूल चुभाते अपने बदन
घाव दिखाते आते जाते
पैदा करते एक सिहरन
दया धर्म के दुहाई देते
देव प्रतिमा पूर्व दर्शन

मन के यक्ष प्रश्‍न
मिटे ना मन लोभ
कौन देते साथ

कितनी मजबूरी कितना यथार्थ
जरूरी कितना यह परिताप
है यह मानव सहयातार्थ
मिटे कैसे यह संताप
द्वार पहुॅचे निज हितार्थ

मांग तो वो भी रहा
पहुचा जो द्वार
टेक रहा है माथ

कौन भेजा उसे यहां पर
पैदा कैसे हुये ये हालात
भक्त सारे जन वहां पर
कोई देता दोष ईश्‍वर
वाह रे मानव करामात

अपने नाते
अपना परिवार
मिले दिल से साथ
2.   
बासंती बयार
होले होले
बह रही है

तड़प रहा मन
दिल पर
लिये एक गहरा घाव
यादो का झरोखा
खोल रही किवाड़
आवरण से ढकी भाव

इस वक्त पर
उस वक्त को
तौल रही है

नयन तले काजल
लबो पर लाली
हाथ कंगन
कानो पर बाली

तेरे बाहो पर
मेरी बदन
झूल रही है

ईश्‍वर की क्रूर नियति
सड़क पर बाजार
कराहते रहे तुम
अंतिम मिलन हमारा
हाथ छुड़ा कर
चले गये तुम

तन पर लिपटी
सफेद साड़ी
हिल रही है

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