रविवार, 20 अप्रैल 2014

एक ग़ज़ल : आज फिर से मुहब्बत की बातें करो


आज फिर से मुहब्बत की बातें करो
दिल है तन्हा  रफ़ाक़त  की बातें करो

ये  हवाई  उड़ाने  बहुत  हो  चुकीं
अब ज़मीनी हक़ीक़त की बातें करो

माह-ओ-अन्जुम की बातें मुबारक़ तुम्हें
मेरी रोटी सलामत की बातें करो

चन्द रोजां की T.V  पे जन्नत दिखी
रब्त-ए-बाहम लताफ़त की बातें करो

फेकना  सिर्फ़ कीचड़ मक़ासिद नहीं
कुछ मयारी सियासत की बातें करो

ये अक़ीदत नहीं ,चापलूसी है ये
गर हो ग़ैरत तो ग़ैरत की बातें करो

बाद मुद्दत के आए हो ’आनन’ के घर
पास बैठो ,न रुख़सत की बातें करो

-आनन्द.पाठक
09413395592
रब्त-ए-बाहम = आपसी सौहार्द
अक़ीदत = किसी के प्रति निष्टा

8 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आ0 जोशी जी
      आप का बहुत बहुत धन्यवाद
      सादर
      आनन्द.पाठक

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  2. आ0 शास्त्री जी
    रचना की चर्चामंच में प्रविष्टि के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद
    सादर
    आनन्द.पाठक

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  3. बेहतरीन ग़ज़ल कही है आनंद साहब !मानी बतलाएं :रफाकत ,माह -ओ -अंजुम ,मक़ासिद ,मयारी आदि लफ़्ज़ों के तो और भी लुत्फ़ उठाया जाए जनाब की ग़ज़ल का।

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  4. आओ वीरेन्द्र शर्मा जी
    आप की ग़ज़ल की जानिब मुहब्बत देख कर मसर्रत [खुशी] हुई .यूँ तो कोई ख़ास मुश्किल अल्फ़ाज़ तो मुस्तमिल [इस्तेमाल] नहीं किया था ख़ैर आप की सहूलियत के लिए मानी लिख रहा हूँ
    रफ़ाक़त = दोस्ती [ रफ़ीक =दोस्त से बना है]
    माह-ओ-अन्जुम = चांद-तारे [माह =चांद और अन्जुम =तारे
    मक़ासिद =मक़सद का बहु वचन है [मक़सद= उद्देश्य .लक्ष्य ]इसी से मक़्सूद भी बना है मंज़िल-ए-मक़सूद
    मयार = standard स्तर गुणवत्ता [जैसे आजकल भाषण का मयार गिरता जा रहा है
    और कोई सेवा हो तो बताइयेगा
    सादर
    आनन्द.पाठक

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  5. भूल सुधार
    आओ को आ0 [आदरणीय} पढे
    टंकण त्रुटि हो गई थी

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  6. ...ये अक़ीदत नहीं ,चापलूसी है ये
    गर हो ग़ैरत तो ग़ैरत की बातें करो
    वाह, कह ही दी खुल कर मन की बात , सुन्दर रचना

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    उत्तर
    1. आ0 डा0 साहब
      सत्य तो सार्वकालिक व सार्वभौमिक होता है आप को बात रुची तो सत्य होगी
      सादर
      आनन्द.पाठक

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