मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

एक ग़ज़ल : ज़िन्दगी को न यूँ कोसिए...



ज़िन्दगी को न यूँ कोसिए
आप ने क्या किया सोचिए

सोच में तो ज़हर है भरा
फिर कहाँ तक शहद घोलिए

बात मेरी सुने ना सुने
पर बहाना तो मत बोलिए

लोग क्या क्या हैं कहने लगे
अब तो ख़ामोशियाँ तोड़िए

दोस्ती मे तिजारत नहीं
इक भरोसे को मत तोलिए

जो मिला प्यार से हम मिले
फिर उसी के ही हम हो लिए

हाल ’आनन’ का क्या पूछना
देख कर ही समझ लीजिए

-आनन्द.पाठक
09413395592

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (09-04-2014) को चुनाव की नाव, पब्लिक का लक; चर्चा मंच 1577 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हास्य-व्यंग्य के सशक्त आयाम
    अलबेला खत्री का असमय में जाना
    जमीन से जुड़े एक महान कलाकार का जाना है...
    चर्चा मंच परिवार की ओर से भाव भीनी श्रद्धांजलि।
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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