मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

प्रेस के झरोखे से अखबारी लाल








किताब बम : पीएम चाहते तो न होता कोयला घोटाला


नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चाहते तो कोयला घोटाले को रोक सकते थे। पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख के अनुसार कोयला ब्लाकों की नीलामी पर सहमत होने के बावजूद सांसदों और अपने मंत्रियों के दबाव के आगे झुककर उन्होंने घोटाले का रास्ता साफ कर दिया। पारेख ने अपनी किताब 'क्रूसेडर ऑर कांस्पिरेटर कोलगेट एंड अदर ट्रूथ' में कोयला मंत्रालय में चल रही गड़बड़ी रोकने में प्रधानमंत्री की लाचारगी को विस्तार से रेखांकित किया है। इसके पहले संप्रग-एक के दौरान प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू भी अपनी किताब में प्रधानमंत्री की लाचारी का वर्णन कर चुके हैं। सोमवार को पारेख की किताब का विमोचन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जीएस सिंघवी ने किया।

हैरानी की बात यह है कि घोटालेबाजों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के बजाय प्रधानमंत्री ने खुद पीसी पारेख को भी तमाम अपमान सहते हुए नौकरी करने की सलाह दी थी। कोयला से संबंधित स्थायी संसदीय समिति की बैठक में भाजपा सांसद धर्मेद्र प्रधान द्वारा जलील किए जाने के बाद पारेख ने इस्तीफा भी दे दिया था। लेकिन प्रधानमंत्री ने उनसे कहा कि इस तरह की स्थिति से वह हर दिन गुजरते हैं और ऐसे हर मुद्दे पर इस्तीफा देना देशहित में नहीं होगा। पारेख के अनुसार प्रधानमंत्री कोयला की ई-मार्केटिंग और कोयला ब्लाकों की नीलामी के प्रस्ताव से सहमत थे और इसके लिए कैबिनेट नोट तैयार करने को भी कह दिया था। लेकिन तत्कालीन कोयला मंत्री शिबू सोरेन और कोयला राज्यमंत्री दसारी नारायण राव के सामने उनकी एक नहीं चली। पारेख ने लिखा है कि 'मैं नहीं जानता कि हर दिन अपने मंत्रियों के हाथों अपमानित होने और अपने लिए फैसले को लागू नहीं करने या बदलने के लिए मजबूर होने के बजाय मनमोहन सिंह यदि इस्तीफा दे देते तो देश को बेहतर प्रधानमंत्री मिल सकता था या नहीं।'

बात सिर्फ कोयला ब्लाकों के आवंटन में हुए घोटाले तक सीमित नहीं है। पारेख के अनुसार उनके कार्यकाल में पूरे कोयला मंत्रालय में हर तरफ लूट और भ्रष्टाचार का साम्राज्य फैला था और खुद कोयला मंत्री और राज्यमंत्री इसका नेतृत्व कर रहे थे। पारेख के अनुसार मंत्रियों द्वारा कोयला की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के सीएमडी और निदेशकों से उगाही से लेकर उनकी नियुक्ति में रिश्वत लेना सामान्य था। इसमें सांसद भी पीछे नहीं रहते थे। उन्होंने विस्तार से बताया है कि किस तरह कांग्रेस से लेकर भाजपा सांसद तक उनसे गैरकानूनी काम करने को कहते थे और नहीं करने पर प्रधानमंत्री और सीवीसी से झूठी शिकायत करते थे।
हिंडाल्को को कोयला ब्लाक आवंटन करने के मामले में पारेख अपनी किताब में सीबीआइ पर जमकर बरसे हैं। खुद को कोयला क्षेत्र में सुधारों का मसीहा बताते हुए उन्होंने घोटाले की जांच में सीबीआइ की मंशा पर सवाल उठाया है। पारेख के अनुसार, यदि हिंडाल्को को कोयला ब्लाक आवंटन करने की संस्तुति करने पर उन्हें आरोपी बनाया गया तो फिर आवंटन करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को क्यों नहीं। पारेख के अनुसार सीबीआइ सिर्फ कंपनियों के आवेदन में खामी निकालने में जुटी है, जबकि असली घोटाला कोयला ब्लाकों की नीलामी रोकने में हुई है, जैसा कि कैग ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था। उन्होंने सीबीआइ पर मीडिया में गलतबयानी कर हिंडाल्को की जांच को सही ठहराने का भी आरोप लगाया है।
कोयला ब्लाक आवंटन मामले में जांच चल रही है। जांच एजेंसी को सरकार मदद कर रही है। इस पर काफी बातें सामने आ चुकी हैं। कानून अपना काम कर रहा है। सरकार के पास छुपाने के लिए कुछ भी नहीं है।' - पीएमओ से जारी बयान
सीएमडी बनाने के लिए शिबू व दसारी ने मांगे 50 लाख
पीसी पारेख ने तत्कालीन कोयला मंत्री शिबू सोरेन और राज्य मंत्री दसारी नारायण राव पर कोल इंडिया लिमिटेड का स्थायी निदेशक बनाने के लिए शशि कुमार से 50 लाख रुपये एकमुश्त और 10 लाख रुपये मासिक देने की मांग की थी। शशि कुमार के मना करने पर दोनों ही मंत्री उन्हें रोकने की कोशिश में जुट गए। दरअसल शशि कुमार पहले से सीआइएल के कार्यकारी सीएमडी थे और सार्वजनिक उपक्रम चयन बोर्ड ने उनका स्थायी सीएमडी के रूप में चयन किया था। यही नहीं, मोटी रकम के लालच में एक बार शिबू सोरेन ने भ्रष्टाचार के आरोपों में निलंबित पूर्व सीएमडी एनके शर्मा को वापस लाने की कोशिश भी शुरू कर दी थी। लेकिन पारेख ने उनकी एक नहीं चलने दी। बाद में सोरेन पारेख को कोयला सचिव के पद से हटाकर वापस मूल कैडर आंध्रप्रदेश में भेजने की कोशिश करने लगे। लेकिन इसी बीच सोरेन के झारखंड में मुख्यमंत्री बन जाने के कारण पारेख बच गए।
ममता ने भी किया पद का दुरुपयोग
पीसी पारेख ने राजग सरकार के दौरान कोयला मंत्री रहीं ममता बनर्जी पर पद के दुरूपयोग का आरोप लगाया है। ममता बनर्जी की सादगी की प्रशंसा करते हुए पारेख ने अपनी किताब में उन पर तृणमूल कांग्रेस के 50 कार्यकर्ताओं को नार्थ इस्टर्न कोल फील्ड्स में नौकरी देने का आरोप लगाया है। पारेख के अनुसार तत्कालीन सीएमडी शशि कुमार ने उनके दबाव में नियमों को ताक पर रखकर इन कार्यकर्ताओं को सिक्यूरिटीमेन के प्रशिक्षु के रूप में नियुक्त कर लिया। ममता बनर्जी ने कोल इंडिया लिमिटेड को कोलकाता में अस्पताल खोलने के लिए दबाव डाला और नेवेली लिग्नाइट कारपोरेशन के निदेशक मंडल में स्वतंत्र निदेशक के रूप में अपने समर्थकों को रखने का हुक्म दिया। वैसे 2004 के चुनाव में राजग की हार के बाद इन आदेशों का पालन नहीं हो सका।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. क्या क्या ले आते हैं आप भी पोटली से :)

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (16-04-2014) को गिरिडीह लोकसभा में रविकर पीठासीन पदाधिकारी-चर्चा मंच 1584 में "अद्यतन लिंक" पर भी है।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. जनता तक खबर मुर्दा होने के बाद पहुँच पाती हैं .... तब क्या करे बेचारी जनता ..क्या क्या देखे .. क्या क्या झेले ..
    बहुत सही

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