शनिवार, 26 अप्रैल 2014

अभिव्यक्ति अनूठी कला या शस्त्र ?-----google plus comu.—Pathic Aanjana


अभिव्यक्ति अनूठी कला या शस्त्र ?
  google plus comu.—Pathic Aanjana
    आज चर्चा ने जो चुगौना उठाया उस पर दर्ज हैं शब्द “ अभिव्यक्ति “
  बहुत ही गंभीर विषय हैं जिसे हर इंसा को अपने जीवन में जितनी शीघ्र  समझ ले जान ले पहचान ले उतना ही सुखी जीवन जी सकता हैं बशर्तै विगत कर्मों का खाता नियंत्रित हैं अब हम विचारें-अभिव्यक्ति एक अनूठी लाजवाब कला / शस्त्र हैं जिसको सही रूप में जान लेना नितान्त आवश्यक हैं इसका निवास हर जीव-जन्तु ही नही बल्कि प्रकृति में निवासरत हैं इनका निवास आंखों मे ज़ुबा में दिल में दिमाग मे हरकतों मेँ किसी एक या सभी स्थानों पर एक साथ हो सकता हैं सही अभिव्क्ति को पहचानना सबसे बडी चुनौती हैं इसका आभास मैंने सर्वाधिक चर्चित शायरी “ हर इक इंसा की शक्ल के पीछे कितने खुदा होते हैं ?”
में प्रस्तुत किया हैं अभिव्यक्तिकर्ता व उदघोषक में  थोडा अन्तर होता हैं यह अलग विषय हैं
   अभिव्यक्ति में कोई फंस भी सकता उभर भी सकता हैं आबाद भी हो सकता बर्बाद भी
यह लिखित हो सकती या बोली जा सकती इशारों मे निहित हो सकती नैनभृकुटि मे से भी
झांक सकती मगर अर्थ प्रभाव तरीका लाभ कभी कभी वक्ता के हित में हो सकती हैं  कुशल कलाकार किसी को अपनी इच्छाओ के दायरे में ला सकता हैं यह लोचनीय भी होती हैं सुनने वाले के चेहरे को पढ अभिव्यक्ति प्रस्तुतकर्ता उसमें मोड ला देता हैं श्रोता नही जान पाता वह क्या खो रहा व क्या पा रहा हैं अधिकतर जगजाहिर नही करते कही उपहास पात्र न बन जावें
   कुलमिलाकर इस चुगौने का आशय सचेत करना कि श्रोता को सुनते पढते समय अभिव्यक्ति के बताये गये सभी निवास झांक कर देख लेना चाहिये तब हित को दूर कर वास्तविक अभिव्यक्ति को पहचान स्वीकार करना चाहिये
    अब आप मंथन करे अनावश्यक भ्रमों विश्वासों से बचने व उचित निर्णय उचित धारणा बनाये जाने हेतू यह क्या आवश्यक विषय नही हैं?
पथिक अनजाना



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें