गुरुवार, 8 मई 2014

धूपछांव भी हम रजनी भी हम-पथिकअनजाना-596 वीं पोस्ट

देखिये साजन भी हम सजनी भी हम ही बने

जिन्दगी में धूपछांव भी रजनी भी हम ही बने
लकीर कहीं तो दिखती नही जो भेद करती हो
जान नसके हम तो कब साजन से सजनी बने
यह तो हद से बाहर प्रदर्शित महुब्बत आपकी
जो आपने खाकसार को शायर का खिताब दिया
मैं सोचता यहाँ  आपका यह फैसला सही नही हैं
अज्ञानी को शायर जैसी  हस्तियों मे शुमार किया
हमें साजन, सजनी मैं खोने देते क्या परेशानी थी
यू जगजाहिर करना क्या मुहब्बत की निशानी थी
पथिक अनजाना



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें