शनिवार, 3 मई 2014

अपना परिचय - चार पंक्तियाँ

ना तो मस्ज़िद ना शिवाले से बात करता  हूँ,

मैं  मुहब्बत  के  हवाले  से  बात  करता  हूँ।

हर  एक  लफ्ज़  से  कुरेदता  हूँ इस दिल को,

हर  एक  ज़ख्म  से  छाले  से बात करता हूँ।


3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-05-2014) को "संसार अनोखा लेखन का" (चर्चा मंच-1602) पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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