सोमवार, 28 जुलाई 2014

चन्द माहिया : क़िस्त 05



:1:
जब बात निकल जाती
लाख करो कोशिश
फिर लौट के कब आती

:2:

यारब ! ये अदा कैसी ?
ख़ुद से छुपते हैं
देखी न सुनी ऐसी

:3:

ऐसे न चलो ,हमदम !
लहरा कर जुल्फ़ें
आवारा है मौसम

:4:

माना कि सफ़र मुश्किल
होती है आसां
मिलता जब दिल से दिल

:5:

 जब क़ैद-ए-ज़ुबां होती
बेबस आँखें तब
इक तर्ज-ए-बयां होती

-आनन्द.पाठक-
09413395592

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (29-07-2014) को "आओ सहेजें धरा को" (चर्चा मंच 1689) पर भी होगी।
    --
    हरियाली तोज और ईदुलफितर की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आ0 काली प्रसाद जी/शास्त्री जी/प्रतिभा जी
    आप सभी लोगो का आभार
    बस यूँ ही आशीर्वाद देते रहिए
    सादर
    -आनन्द.पाठक

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