मंगलवार, 22 जुलाई 2014

मेरे स्कूल के दिन



मेरे बचपन के दिन
मेरे स्कूल के दिन
मैथ्स की कॉपी से फाड़कर पन्ने
हवाई जहाज़ बनाना
क्लासरूम में उड़ाना
दोस्तों का खिलखिलाना
एक -दूसरे के टिफ़िन पर
हाथ आजमाना
मोर-पंखी किताबों में छुपाना
तितली पकड़ने को
वो भागना -दौड़ना
मास्टरजी का धुंद पड़ा चश्मा
पुरानी कुर्सी का डगमगाना
बारिश में खिड़की से
क्लास का भीग जाना
और वो छुट्टी होने पर
दौड़ते- भागते
एक दूसरे को टंगड़ी मारना
वो रूठना
मान जाना
वो दोस्ती लम्बी-लम्बी
वो दुश्मनी छोटी-छोटी
वो सच
वो झूठ
वो खेल
वो नाटक
वो किस्से
वो कहानी
परियों वाली
राक्षस वाली
बचपन के सपने
जिसमे सब कुछ मुट्ठी में
न गम
न फ़िक्र
याद बहुत आते है
वो दिन ...
मेरे बचपन के दिन
मेरे स्कूल के दिन

सुबोध- जुलाई २, २०१४

15 टिप्‍पणियां:

  1. एक कवि ने कहा भी है- जनम-जनम की कसमं लेलो ,दो दिन फिर बचपन दे जाओ!

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  2. बेहतरीन दिल को छू जाती शब्दावली

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