रविवार, 27 जुलाई 2014

तुम सुंदर हो


तुम सुंदर, तुम से जग सुंदर
इस जग की सब बाते सुंदर
पशु ,पक्षी, जंगल सुंदर
धरती, नदिया ,बादल, सुंदर

सागर, बालू, सीपीं सुंदर
लहराती फसलें सुंदर
इस धरती की ममता सुंदर
और अस्मानी छाता सुंदर

हरलो मानव मन की कालिख
तो, बन जाये वह भी सुंदर
मैं भी सुंदर, वह भी सुंदर
तेरा प्रकाश सब के अंदर

हर रूप मे हो मानव सुंदर
बाहर से हो या फिर हो अंदर

क्यू कि तुम सुंदर हो।






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