सोमवार, 1 सितंबर 2014

चन्द माहिया : क़िस्त 07



::1::
ये हुस्न तो फ़ानी है
फिर कैसा पर्दा
दो दिन की कहानी है

::2::
कुछ ग़म की रात रही
कुछ रुसवाई भी
हासिल सौगात रही

::3::
इतना तो बता देते
क्या थी मेरी ख़ता
फिर चाहे सजा देते

::4::

आकर भी मिरे दर से
लौट गए क्यों तुम
रुसवाई  के डर  से

::5::

जब से है तुम्हें देखा
 देख रहा हूँ मैं
इन हाथों की रेखा

-आनन्द.पाठक-
09413395592

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