शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

वैदिक शब्दावली (२)

वैदिक शब्दावली (२)







(१)गर्भोदकशायीविष्णु  (Garbhodakashaayee Vishnu ):इन्हें द्वितीय पुरुष भी कहा गया है। यह विष्णु का दूसरा विस्तार हैं जो अनंत कोटि ब्रह्माण्डों में से प्रत्येक में प्रवेश करते हैं तथा जिनकी नाभि से निसृत कमल से ब्रह्मा जी प्रकट होते हैं। 

An expansion of Maha Vishnu ,who resides at the bottom of each material universe .

(२ )कारणोदकशायी विष्णु (kaaranodakshaayee Vishnu ):इन्हें महाविष्णु भी कहा  गया है ये विष्णु रूप में कृष्ण की परम शक्ति (Plenary power )का ही विस्तार हैं। इनसे ही तमाम अनंत कोटि ब्रह्माण्ड उद्भूत (निसृत )होते हैं। 

The form of Lord Vishnu ,commonly called Maha Vishnu ,Who resides in the causal ocean and from whom all the infinite universes come froth .

(३) क्षीरोदकशायी विष्णु (Kshirodakshaayee Vishnu ):यह कृष्ण का विष्णुरूप विस्तार हैं जो प्रत्येक परमाणु में प्रवेश करते हैं हमारे हृदय में बसते  हैं। जन्म -जन्मान्तरों से ये हमारे संग हैं हम ही इनकी ओर पीठ किये हुए हैं। 

The expansion of Lord Maha Vishnu ,who resides at the top of every universe .

(४)गोलोक :यह श्री कृष्ण का दिव्यधाम है जो उनकी योगमाया का ही विस्तार है इस गोचर मायावी (पदार्थीय सृष्टि )से परे  से भी परे  है यह दिव्यलोक। 

(५ )ब्रह्मज्योति (तेजस ):इसे ब्रह्म भी कहा गया है यह श्री कृष्ण के दिव्य शरीर से निसृत दिव्यप्रकाश है।यशोदा माता घर के कोठे (सबसे अंदर के अँधेरे कमरे में) माखन छिपा देती थीं बालक कृष्ण के दिव्य शरीर से निसृत प्रकाश उसे आलोकित  कर देता था। ब्रह्म को इम्पर्सनलफॉर्म आफ गॉड (सुप्रीम गॉड हेड /सुप्रीम सोल का निर्गुण निर्विशेष रूप )भी कहा गया है। वैकुण्ठ लोक इसी ब्रह्मज्योति (तेजस )से आलोकित रहता है। 

The impersonal body effulgence emanating from krishna's transcendental body ,constituting the illumination of the spiritual sky .

(६ )वैकुण्ठलोक  (Vaikunthh Loka ):इस दिव्यधाम में किसी प्रकार की कोई बे -चैनी नहीं है। यहां ब्रह्म ज्योति में अनेक ग्रह अपना अक्षुण अस्तित्व बनाये रहते हैं।

It is  a "place of no anxiety ";spiritul planets are located in brahmjyoti .  

 (७)कारण ओशन (Causal ocean कारण समुद्र ,क्षीरसागर  ):अनंत कोटि गोचर सृष्टियों के सृजन हेतु महाविष्णु जिस समुद्र में आसीन रहते हैं वाही कारण समुद्र है। 

क्षीरसागर क्षीरोदकशायी विष्णु का आवास है जो प्रत्येक सृष्टि के ऊपर शीर्षबिंदु (शिखर) पर अवस्थित रहता है। 

5 टिप्‍पणियां:

  1. यह ज्ञान वर्षक प्रयास सराहनीय है !

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  2. बहुत सुन्दर सचित्र ज्ञानवर्धक प्रस्तुति

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (13-09-2014) को "सपनों में जी कर क्या होगा " (चर्चा मंच 1735) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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