बुधवार, 17 सितंबर 2014

वैदिक शब्दावली (छटी किश्त )


मंगलवार, 16 सितंबर 2014


वैदिक शब्दावली (छटी किश्त )

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वैदिक शब्दावली (छटी किश्त )

(१ )अर्चा विग्रह(अर्चा -मूर्ती ):परमात्मा का प्रामाणिक अवतरण पदार्थ की (मिट्टी ,पत्थर ,लकड़ी आदि )की मंदिर में प्राण - प्रतिष्ठापित मूर्तियों में ,यज्ञ की बलिवेदी पर आवाहित ऊर्जा द्वारा पूजित मूर्तियों में  अर्चा विग्रह कहा गया है।मूर्तिभंजक इस मर्म को नहीं समझ सकते।  


archa -vigrah is the woshipable form of the Lord.

Archa -Vigraha :an authorised form of God manifest through material elements and worshiped on an altar .

the archa -vigrah which is worshiped in temples is also an expanded  form of the Lord (expansion of Lord's plenary power).By worshiping the archa -vigrah ,one can at once approach the Lord ,who accepts the service of a devotee by His omnipotent energy .

Archana :It is the procedures for worshiping the archa -vigraha  .

(२)स्वांश (Swansh ,अनडिफ्रेंटिएटेड पार्ट्स आफ गॉड ):भगवान के अनेक अवतारों को यथा मर्यादापुरुषोत्तम रामचन्द्र ,नृ-सिंह (नरसिम्हा ),वराह आदि को स्वांश कहा गया है। ये श्री कृष्ण से अलहदा नहीं हैं इसीलिए इन्हें स्वांश कहा गया है। स्वांश का मतलब है कृष्ण के समेकित हिस्से (integrated parts ).मास्टर कोशाओं (मासटर सेल्स ,स्टेम्स सेल्स,अन -डिफ्रेंशिएटिड स्टेम सेल्स  )की मानिंद  हैं ये अवतारीरूप यानी स्वांश । 

(3) विभिन्नांश (Differentiated parts of God ):ये परमात्मा की जीवशक्ति (Marginal energy ,soul energy )के कण हैं। समस्त प्राणियों देवताओं समेत जिनका जीवजगत में अस्तित्व है ,सभी प्राणियों की  आत्माएं कृष्ण के विभिन्नांश हैं उसकी सीमान्त ऊर्जा के अति सूक्ष्मतर कण समान हिस्से हैं। 

(५)सत्यभामा :कृष्ण की पटरानी हैं सोलह हज़ार एक सौ आठ रानियों में से। अपनी योगमाया से कृष्णअपनी  द्वारकानगरी में  इन तमाम रानियों के साथ एक ही समय पर अलग अलग महलों में अलग अलग कर्म करते हुए नारद द्वारा देखे गए हैं (पढ़िए भागवतपुराण  ) . इनके बीच अशरीरी प्रेम हैं स्पिरिचुअल सेक्स है। अनंत लीलाएं हैं। गोप गोपियों के संग रास लीला भी इसी योगमाया का विस्तार हैं वे तमाम गोप बालाएं अपने घर में अपने पतियों के संग सोई होतीं थीं और कृष्ण के साथ भी रास में निमग्न रहतीं थीं। प्रत्येक गोपी को सिर्फ कृष्ण उसी के साथ रास रचाते  दिखलाई देते  थे । उसे लगता था कृष्ण सिर्फ मेरे साथ हैं सिर्फ मुझसे प्रेम करते हैं ऐसा हैं कृष्ण का गोपीभाव। 
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 के प्रतिमधुरप्रेम। यही प्रेमा भक्ति है माधुर्य भाव की भक्ति है। 

(४)Bhaktivedantas :advanced transcendentalists who have realized the devotional conclusion of the Vedas.

ट्रेन -सेन -डेंटलिस्ट उसे कहा  जाएगा जिसने ब्रह्म तत्व को जान लिया है जो तीनों गुणों (सतो-रजो -तमो ) से असर ग्रस्त नहीं होता ,जो रागद्वेष ,हर प्रकार के द्वंद्व से परे  है जिसने जान लिया है की यह सृष्टि उसी एक परब्रह्म की अभिवक्ति है उसने इसे बनाया नहीं है वह इसी में व्याप्त है इससे अलग नहीं  है। वह तत्व ज्ञानी है ट्रेनसैनडेन्टल्सिस्ट है। आप अभय चरण भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद का उदाहरण ले सकते हैंजिनके नाम के पहले यह शब्द इस्तेमाल होता है। । 

जो अंदर भी है बाहर भी है दूर से दूरतर भी है और निकट से निकटतरभी । हिलता डुलता भी है अडोल भी है जिसकी गति मन से भी ज्यादा है जो चलता नहीं है लेकिन सब जगह एक साथ पहुँच जाता है। उपनिषद ईश्वर के ऐसे ही विरोधी गुणों की व्याख्या करते हैं। जिसने इस रहस्य को तत्वत : जान लिया है वही गुणातीत है,ट्रेन्-सेन -डेंटलिस्ट है। मन और इन्द्रियों और उनके तमाम विषयों से परे है।  

(५ )रास लीला (Krishna's pastimes with Gopees in Vrindavan ):श्री कृष्ण का वृन्दावन के गोप गोपियों के संग सामूहिक नृत्य रासलीला है।डिवाइन पासटाइम्स है। 

(६)कारण समुद्र (Kaaran ocean ):यही वह समुद्र है क्षीरसागर है जहां महाविष्णु शेष (अनंतशेष )शैया पर लेटे अनंत कोटि सृष्टियाँ उद्भूत करते हैं निसृत करते है रिलीज़ करते हैं। 

(७ )दामोदर :कृष्ण के जितने नाम हैं वे उनकी लीलाओं से जुड़े हैं जैसे मुर राक्षस का वध करने के कारण उन्हें मुरारी कहा गया केशि को मारने की वजह से वह केशव कहलाए ऐसे ही एक मर्तबा यशोदा माता कृष्ण को रस्सी से बाँध देतीं हैं जब कृष्ण ग्वाल बालों के संग लौटते हैं और कोठे में यशोदा माता द्वारा छिपाकर  रखा सारा मख्खन मटका फोड़ कर  बिखेर देते हैं ,शेष बचा बंदरों को खिला देते है। 

 इसीलिए इन्हें दामोदर कहा गया अर्थात जिनका उदर दाम (रस्सी )से बाँध दिया था माता यशोदा ने। ये वही कृष्ण थे  जो एक बार मिट्टी  खाकर ग्वाल बालों के संग   लौटे थे। बलराम ने शिकायत की माता ने कहा  मुंह खोलके दिखाओ और कृष्ण ने उन्हें अपना विश्वरूप दिखला दिया जिसमें ग्वाल बालों संग यशोदा भी थीं उनके मुख में और वे बाहर भी थीं। ऐसी हैं कृष्ण की लीलाएं। ये वही कृष्ण थे  जिन्होनें अपने वामन अवतार रूप में पूरे ब्रह्माण्ड को अपने तीन डगों से नाप दिया था। वही कृष्ण यशोदा के हाथों यूं बांधे गए वात्सल्य भाव की भक्ति के चलते। 

3 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय संस्कृति को जीवंत बनाने का आप का प्रयास सराहनीय है !

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  2. वीरेन्द्र जी ..ये सब इस्कोन की कहानियां हैं....यद्यपि उसी पौराणिक भाव में सिक्त होते हुए भी अक्रमिकता लिए हुए एवं भ्रमात्मक हैं ...ये सारे कथ्य व तत्व पौराणिक हैं वैदिक नहीं.....
    archa -vigrah is the woshipable form of the Lord. = पूजी जाने वाली मूर्ती है न की प्रामाणिक ....यज्ञ की वेदी पर कोइ विग्रह या मूर्ती नहीं होती ..

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  3. श्याम जी आप विज्ञ हैं ,भागवद्पुराण और भगवद्गीता एज़ इट इज़ बाँचते पढ़ते गुनते वक्त जो परेशानियां हमें पेश आईं उन्हीं का निराकरण किया है यह शब्दावली देकर। आप हमारी भूलों को सुधारें इससे बड़ा हमारा क्या सौभाग्य हो सकता है।

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