मंगलवार, 30 सितंबर 2014

गांव के पुरवासी

बेटवा सुन
गांव देखा है कभी
दादी पूछते
नही दादी नही तो
किताब पढ़
जाना है मैं गांव को
भारत देश
किसानों का देश है
कृषि प्रधान
गांवो में बसते हैं
किसान लोग
मवेशियों के साथ
खेती करते
हां  बेटा हां
गांव किसानों का है
थोड़ा जुदा है
तेरे किताबों से रे
अपना गांव
गांव की शरारत
अल्हड़ प्यार
लोगों के नाते रिश्ते
खुली बयार
खुला खुला आसमा
खुली धरती
तलाब के किनारे
आम के छांव
लगे बच्चों का डेरा
खेल खेल में
खिलते बचपन
सखी सहेली
पक्षी बन चहके
गली आंगन
पुष्प बन महके
मुर्गे की बांग सुन
छोड़ बिछौना
जागे हैं नर नारी
नीम की डाल
दातून को चबाते
काली मिट्टी को
बदन में लगाते
खुले में नीर
मल मल नहाते
खेती का काम
लोग करे तमाम
माटी की सेवा
श्रद्धा के साथ करे
छेड़े हैं गीत
खेत खलिहानों में
अन्न की दाना
जगत को बांटते
प्रेम के साथ
स्नेह पुष्प खिलाते
एक दूजे के
सुख दुख के साथी
गांव के पुरवासी ।

-रमेशकुमार सिंह चौहान

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