शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

क्या सही है , क्यों सही है ??? ( भाग-5 )


बेटियों को अच्छा बताने के लिए ,क्यों बुरा बताऊ बेटों को ?
समाज ने बेटों को अहमियत दी , बेटी को नहीं दी तो उसका बदला इस तरह लिया जाए ?
बेटी को प्यार दिया, किसने ?
बहु को इज्जत दी , अधिकार दिए . किसने ?
माँ को सम्मान दिया इतना कि चरणो में स्वर्ग मान लिया . किसने ?
ये सब प्यार, इज्जत ,सम्मान देने में क्या मर्द ( बेटे ) शामिल नहीं थे ?
तो फिर सारे मर्द गलत कैसे हो गए ?
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बहु-बेटी जलाई जाती है, घर से माँ-बाप बेदखल किये जाते है , ढेरों गलत व्यवहार किये जाते है ?
क्या अकेला मर्द करता है ?
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सालों से कोई प्रताड़ित किया जाता है, आलोचना की जानी चाहिए उसकी
लेकिन आलोचना का मतलब विद्वेष नहीं होता !!!
किसी एक के अहम में हुंकार भरने के लिए
दूसरे का अहम रौंदना तो नहीं चाहिए , कुचलना तो उचित नहीं !
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और क्या एक के बिना दूसरा पूरा है ?
राखी होगी, कलाई नहीं
कलाई होगी ,राखी नहीं
मांग होगी ,सिन्दूर नहीं
सिन्दूर होगा ,मांग नहीं
एक के बिना दूसरा अधूरा है
बात पूरेपन की करें अधूरेपन की नहीं !!!
सुबोध - २७ सितम्बर,२०१४

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुबोध भाई सहमत आपके मंथन से। अहम पीड़ित विभाजन है औरत मर्द का ईश्वर तो अर्द्धनारीश्वर है।

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  2. बेहद गंभीर सन्दर्भ और आज की हमारी जिंदगी से सीधे जुड़ा मुद्दा ,सुन्दर विवेचना .सादर

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  3. सभी मित्र परिवारों को आज संकष्टी पर्व की वधाई ! सुन्दर प्रस्तुतीक्र्ण !गम्भीरता-पूर्ण !

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